Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 587
________________ श्री सु I f ५७९ श्रीकान्त, पद्म, महापद्म, चित्रवान, विमलवाहन और अरिष्टसेन। आगे जागामी नव नारायण के नाम कहिये हैंनन्द, नन्दमित्र, नन्दन, नन्दभूति, महाबल, अतिबल, भद्रबल, द्विपिष्ट और त्रिपिष्ट — ये नव नारायण होंगे। इनही नारायण के बड़े भाई, आगामी बलभद्र, होंगे। तिनके नाम - चन्द्र, महाचन्द्र, चन्द्रधर सिंहचन्द्र, हरिश्चन्द्र, श्रीचन्द्र, पूर्णचन्द्र, शुभचन्द्र और बालचन्द्र -- ये नव बलभद्र, जागे होंगे। आगे नव प्रतिनारायण होंगे। तिनके नाम श्रोकरुठ, हरिण्ट, नीलकण्ठ, अश्वण्ड, सुकण्ठ, शिष्यकण्ठ, अश्वग्रीव, हयग्रीव और मयूरग्रीव - ये नव प्रतिनारायण होंगे। इति प्रतिनारायण नाम। आगे आगामी ग्यारह रुद्र होंगे। तिनके नाम — प्रमद. सम्मद, हर्ष, प्रकाम, कामाद, भव, हर, मनोभव, मारु, काम और अङ्गन- ये ग्यारह रुद्र कहे। ऐसे उत्सर्पिणी मैं तोर्थङ्कर, चक्री नारायण बलभद्र, प्रतिनारायण – ये बड़े पुरुष होंगे। आगे भरतक्षेत्र सम्बन्धी, अतीत चौबीस - जिन हो गये । तिनके नाम कहिये हैं – निर्वाणनाथ, सागर, महासाधु, विमलप्रभ, श्रीधर, सुदत्तनाथ, अमलप्रभ, उद्धर, अङ्गिर, सन्मति, सिन्धु, कुसुमाञ्जलि, शिवगण, उत्साह, ज्ञानेश्वर, परमेश्वर, विमलेश्वर, यशोधर, कृष्णमति, ज्ञानमति, शुद्धमति, श्रीभद्र, अतिकान्त और शान्त --- ऐसे तीन काल सम्बन्धी, तीन चौबीसी तिनके नाम लेय अन्त-मङ्गलकं उन्हें नमस्कार किया। ये भगवान् भव्यनकूं मङ्गल करो और इनके माता-पिता आयु का प्रमाण चिह्न का वर्णन कह्या इनके वारे जो महान् नर भये । कामदेव, चक्की, नारायण बलभद्र, प्रतिनायाण, कुलकर, रुद्र, नारद-इन आदि ये महान पुरुष भव्य राशि निकट संसारी इनका भी नाम मङ्गलकारी है। क्योंकि ये सर्व मोक्षगामी जिन-धर्म के पारगामी हैं। इनकी कथा मङ्गल के अर्थ यहां प्ररूपण करी । इति तीनकाल सम्बन्धी तीर्थङ्करादि त्रेसठ शलाका पुरुषन के नाम आगे अन्त-मङ्गलको भरतत्क्षेत्र सम्बन्धी सिद्धक्षेत्र के नाम कहिये हैं कैसे हैं सिद्धक्षेत्र जहां तैं महाव्रत के धारी योगीश्वर शुक्लध्यान अनि करि अष्ट कर्म रूप ईंधन जलाय निरञ्जन होय सिद्धक्षेत्र लोक के अन्त तहां जाय विराजते जहां अनन्त-सिद्ध बिराजे हैं। तातें जहां तैं प्रभु मोक्ष गए तहाँ जाय तिन सिद्धक्षेत्रन की प्रत्यक्ष वन्दना करने को तो मो मैं शक्ति नाहीं । तातें इस ग्रन्थ के पूर्ण करने के अन्त - मङ्गल के मिस करि सर्व क्षेत्रन के नाम लेथ मङ्गलाचरण कीजिये है सो प्रथम ही आदिनाथ का निर्वाणक्षेत्र कैलाश पर्वत है, सो अष्टापद कौं नमस्कार होऊ । २ । अजितनाथ आदि बीस तीर्थङ्करों का पी व t

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