Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 601
________________ का प्रमाण कहिये है--सो समवशरण को पाँच वेदी, च्यारि कोट और गलोन को वेदो। सो इनकी ऊँचाई तौ । अपने तीर्थक्कर के शरीर की ऊँचाई त चौगुणी है और क्रीड़ा-मन्दिर तथा जिन-मन्दिर तथा कोट-चैदी के द्वार के रतन-स्तूप, मानस्तम्भ, ध्वजादण्ड, क्रीड़ा-पर्वत, नृत्यशाला, चैत्यवृक्ष, कल्पवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष, अशोकवृक्ष तथा बारह सभा, श्रीमण्डप, राते स्थान अपने-अपने तीर्थकरन के शरीर की ऊँचाईतें.बारह गुण ऊंचे हैं। समोवशरस का प्रमाण-वृषभदेव का बारह योजन प्रमाण है । औरन के यथायोग्य घटता है और जसे- पिणी के जिनों का समोवशरण-प्रमाण, घटता कह्या । तैसे ही उत्सर्पिणी के जिनों का समोवशरण-प्रमाण बधता जानना और विदेह क्षेत्रन में समोवशरण का प्रमाण, वृषभ देव के समान, सदेव सर्व जिन का जानना। ऐसे समोवशरण का कथन किया। सो त्रैलोक्य प्राप्ति, धर्म संग्रह, समोवशरण स्तोत्र, धादिपुराण इत्यादिक ग्रन्थों के अनुसार वर्शन किया। कोई आचार्य करि सामान्य-विशेष रचना का कथन होय,सौ केवलज्ञान-गम्य है।ऐसे सामान्य समोवशरण को रचना कहो। गैसे समोवशरण विर्षे श्रीजिनेन्द्र विराजे है। सो अष्ट प्रातिहार्य करि मण्डित है सो तिन प्रातिहार्यन का विशेष कहिये है । सो तहाँ गन्धकुटी के मध्य जाका मूल अरु चौगिरद बड़े विस्तार धरै, नाना प्रकार रत्रमयी शाखान व रत्नमयी फल-फूल पत्र सहित, अशोक वृक्ष है। ताके देखे अनेक जाति का शोक जाता है है। ताते याका नाम अशोक पक्ष है।श देवन करि वर्षाई. सर्व समोवशरण में अनेक वर्णमयी महासंगन्ध सहित कल्पवृतन के फूलन की वर्षा, सो अद्भुत महिमाकारी मानौ ण्योतिषो देवन के विमान ही माकाश ते भगवान् के दर्शनकं आये हैं। ऐसी प्रभा सहित फूलन की वर्षा होनी सो पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य है। २। आकाश विर्षे देवनि करि बजाये। २२ करोड़ जाति के अनेक सुन्दर वादिनन के शब्द, सो दुन्दुभी वादित्र है। उसी का नाम दुन्दुभी प्रातिहार्य है। ३। जैसा जिनदेव के शरीर का वर्ण, ता समान शरीर की चौगिरद, गोलाकार, शरीर की प्रभा का मण्डल सो प्रभामण्डल है। तामें भव्य जीव अपने-अपने अगले-पिछले भव देखें हैं। उसी का नाम प्रभामण्डल है।४। तथा अनेक रत्नमयी सिंहासन शो है 1 ताप जिनदेव विराज । सो सिंहासन प्रातिहार्य है।श एक दिन रात्रि विर्षे ४ बार छ:-छः घड़ी पर्यन्त, भगवान् की वाणी निरै। सो दिव्य-ध्वनि है। सो जेसे मेघ गर्जे तैसे शब्द करती औंठ नाही हिले, तालवा नाही हिले, सर्व शरीर से उत्पन्न भई, अक्षर रहित, भगवान् को वाशी खिरे ५

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