Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 607
________________ श्री སྐྱ་ T fir ५९९ धर्मानुराग सूं, यह कार्य किया है। अपने बांये करकी अंगुली को नौंक, रोग सहित राखी थी, सो राजा को बताई। कही, भो नरेन्द्र ! यह अँगुलि समान, यह सर्व तन था। सो धर्म के प्रसाद करि, प्रभुको भक्ति के प्रसाद करि, यह तन शुद्ध भया। तातें तूं कोप मति करै । वाने सत्यही कही थी। ऐसे वचन मुनिके सुनि, राजा अचरज कुं प्राप्त भया । मिथ्या बुद्धि गई। अरु शुद्ध धर्मका धारी मया । बारम्बार सर्वज्ञ का धर्म प्रशंस्या । सर्व लोग यह अतिशय देख, मिथ्या भाव तजि, शुद्ध धर्मके धारक भए । और श्री वादिराज मुनीन्द्रकी स्तुति करते भये । अरु वादिराज - योगीश्वर का किया एकीभाव स्तोत्र कौं, घनै भव्य, मङ्गलके अर्थ सुनते भये, पढ़ते भये । ऐसा एकीभाव स्तोत्र अरु इसके कर्ता श्री वादिराज मुनीश्वर जगत गुरु. इस ग्रन्थके अन्त में, इस ग्रन्थके कर्त्ता कूं, तथा इस ग्रन्थके पढ़नेहारेन कूं मङ्गल करों। ऐसे वादिराज नामा आचार्य कूं नमस्कार करि अन्त-मंगल विषै तिनके गुणनका स्मरण किया। आगे इस ग्रन्थके अन्त मंगल करते, श्री भक्तामर स्तोत्र के कर्ता श्री मान करिये है। कैसे हैं श्री मानतुंगाचार्य, प्रत्यक्ष जिनधर्म प्रकाशनेकू दिनकर सूर्य समान हैं । अरु मिथ्या-सन्देह मयो शिखर, ताके मंजन, इन्द्रवज्रके समानि हैं। प्रत्यक्ष भगवन्त देव के महाभक्त हैं। तथा कुवादीनको अतत्व श्रद्धान रूपी प्रवाह रूप नदी, सो कुनय रूप तरंगनि सहित, सो ज्ञान रूपी जीर्ण वृक्ष तिनकौं उपाड़ती, अपनी स्वेच्छा वेग रूप बढ़ती ऐसी तरंगिणी, ताके कवे मानतुंग गुरु, कुलाचल शिखर समान हैं। ऐसे गुरुकूं नमस्कार होऊ। जिन नैं भक्तामर स्तोत्र करि प्रगट यश पाया । तिनतें भक्तामर स्तोत्र कैसे भया, सो कहिये है। तहां उज्जैन नगरी, जहां राज सिंह महा-प्रतापी, राज्य करै । ताके रत्नावली नाम स्त्री, सो महा सती, शची समान रूपवती है सो तिनकें पुत्र नाहीं राजा चिन्ता भई । तब मन्त्रीने कही। हे नाथ धर्म सेवन कीजे । ताके प्रसाद, सब सुख होय है। ऐसे करते, एक दिन राजा, परिवार सहित वन गया। सो एक सरोवरके तीर मुंजके वृक्ष नोचे, एक बालक देख्या । सो बालक, रानोकूं दिया और ताका नाम मुंजकुमार रखा । सो बालक अपने रूप गुण सहित, बढता भया। पीछे केतैक दिन गये, रत्नावली रानो गर्भ रह्या । सो नव मास पूर्ण भये, पुत्र भया। ताका नाम, सिंहलकुमार रखा। यह अनुक्रम तैं, तरुण भया । तब पिताने, सिंहलकुमारके व्याह किये सो शुभ राजों को पुत्रों, तिनमें एक मृगावती नामा रानी सहित कुमार 容 + ५९९ गि सो

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