Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 615
________________ 107 थी। जो यह कार्य कैसे सिद्ध होयगा? सो कोई पूर्व-पुण्य ते. इष्ट देवने, ज्ञान अंश मया चिन्तामणि दिया। ताके प्रसाद करि, निर्विघ्न कार्यकी सिद्धि पाई। सो इस बातका हमकों महा अद्भुत सुख भया। तथा जैसे कोई बालक-बुद्धि-पुरुष, शक्ति रहित काष्ठका खडग धाधि प्रबल वैरोका गढ़ जीतिनेकौं संग्राम करि, जीति पाय, गढ़ लैंय जगत को आश्चर्य उपजाथ, यश पावता मया। तैसे ही मैं ज्ञान-बल रहित तुच्छ अक्षर मान लें, रोसा महान ग्रन्थ पूर्ण किया / सो ये भी प्राश्चर्य है। इन मादिक आश्चर्य सहित, इस ग्रन्थके पूर्ण होते हर्ष भया / ग्रन्थकर्ता अपना जन्म, कृत-कृत्य मानता भया। जो या तन तें, शुभ कार्य करना था, सो किया। ऐसे अपना भव धन्य मान्या। परभव सुधरनेकी साई (ब्याना)समान, आशा भई ताकरि परम-सुख भया / इस ग्रन्थ विर्षे अनेक सान तरङ्ग उपजों जाका कथन पाइये है। ताल धाके अध्ययन किर, सष्टि होय / अरु ज्ञान-तरडनका रहस्य जानै / तो तत्त्वज्ञान पाय परम सुखी होय, मोक्ष मार्गका ज्ञाता होय / पाप-पुण्यके शुभाशुभका भी वैत्ता होय। उच्च पद पाय, परंपराय जन्म मरण मैटै ऐसा जानि इस ग्रन्थकै अभ्यास विर्षे प्रवर्तना योग्य है। ऐसे इस ग्रन्थको बालबोध व चनिका रूप टीका, अपनी आलोचनाकू लिए, आदि-अंत इष्ट देव-गुरुको नमस्कार करि पूर्ण करी। मे वस्तु गुण सहता, वस्तु कर्म रहना, सिद्ध कहता सो देवा / चतु पात निवारे, चगुण घारे, तन पिति कारे तिस सेवा / / ताको सो वानी धर्म कहानी, शिव दरशानी, मैं ध्याऊ / ते नगन बारीरा, सब जग पी-हरा, तप घर धीय गुण गाऊं // 1 // ये देव परम गुरु, तिष्ठी मो सर, हे शिष सुख कर जगनाथा। मैं इनको दासा, और न आषा, है यह प्यासा, रक्ष तथा 11 यह टेक हमारी हे गुणकारो, तुम थुति प्यारी, पाप हरा / सो मोदीजे, ढोल न कीजे, लेय घरोजे, मोक्ष-धरा // 2 // यह सुदृष्टि तरङ्ग है, ताको यह विस्तार। सागर सम जो यह तिरै, सम्यक टेक सुधार।३। गुरु आज्ञा-नौका चढे, शङ्का सकल निधार / ते सदृष्टि तरङ्गके, उतरे पैले पार।। शीतल-जिनके जन्म थलि, ग्रन्थ समापति कीन। विघ्न मिटे मङ्गल थये भये पाप सब हीन / 5 / टेक गई अघ कारनी, रही टेक मुनि दाय। सो यह मव-मव टैक हम, मिलै टेक वृष दाय / 6 . संवत् अष्टादश शतक. फिर ऊपर अड़तोस / सावन सुदि राकादशी, अर्धनिशि पूरण कीन।७। 6.7 तिर | इति श्री सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम अन्य के मध्यमें कवि आलोचनादि का वर्णन करनेवाला व्यालोसंवा पर्व सम्पूर्ण // 42 // इति श्री पण्डित टेकचन्द्र जो कृत, सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्म तथा ताकी बालबोधिनी टीका सम्पूर्ण /

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