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मानतुङ्ग नामा मुनीश्वर के ल्यायवै को भेजे । तिनतें मुनीश्वर सूकही-है नाथ [ राजा भोज नै नमस्कार कह्या है अरु जापकू बुलाये हैं। तब यति ने कही-हमारा राजगृह में प्रयोजन नाहीं। ऐसी कही और नहीं गये तब कालिदास कही-भो राजन् ! वह मानतुद्रमान का शिखर है। महामानी है सो भली तरह नहीं जायेगा तब राजा भोज, कोप करि कही यतिको, पकड़ि ल्यावो। ऐसी सुनि, राजा के सेवक गये, सो यतिकू उठाय ल्याये राणा के पास घर था सो यति मौन सहित, पञ्चपरमेष्ठी का ध्यान करते, तिष्ठते भये। तब राजा. कोप करि कही-याको बन्दीगृह में धरौ। तब राजा की जाज्ञा याय, किरों ने यतिको मौहरे में दिया सो अड़तालीस कोठों के मीतर मुदे और सब कोठों के जुदे-जुदे ताले दिये। राजा की तिन मुहर करी जरु यति के पावन में बड़ी अरु हाथ में हथकड़ी, गले में जेल (सांकल) डाली इत्यादिक दृढ़ बन्धन किये । ताप, अनेक विश्वासी सुभट राखे । ऐसे महासंकट के स्थान में, मुनीश्वरकू नाझ्या। सो वीतरागी यति, समता सहित रहे । तहा तोन-दिन भये, तब यतीश्वर ने विचारी कि यामें जिन-धर्म की न्यूनता दिखेगी। पापीपन, धर्मी-पुरुषनकू पीड़ेंगे। रोसी जानि जादिनाथ स्वामी का स्तुति, महाभक्ति-भावन सहित करी। ४८ काव्य किये। तिनमें अनेक मन्त्र, अतिशय सहित गर्भित करि भक्तामर नाम दिया सो मन्त्र समान उत्तम काव्य किया। तिनमें आदिनाथ भगवान के गुण कहे । सो प्रभु की स्तुति के प्रसाद करि सर्व कोठों के ताले अकस्मात् टूटि गये। यति के सन-बन्धन झड़ गये । यति निबंधन होय आये । सो तिनकों देख. सेवक डरे तब यतिकी बहुत बंधन में दिये सो फेरि बन्धन टूटि गये। तब राजा भोज जाय, सेवक ने कही-भो नाथ ! यति बाहर निकसि आये हैं। तीन बार बन्धन में दिये तीनों बार, बन्धन मा-आप टूटे हैं। ऐसा आश्चर्य न देखा, न सुन्या। तब राजा भोज ने, कालिदास आदि सर्व पण्डितोंकों कहीजो यह अतिशय यति का भया। तब सब ने कही-मो राजा ! यह यति, महाजादुगर है । सो मन्त्र-तन्त्र करि निकस्या है। बन्धन तोड़े हैं। तब राणा | ने दृढ़ बन्धन करि पुनः कोठरी मैं बन्द करि चौकी राखी। तब यति ने मक्तामर स्तुति का याठ किया। | सो सर्व बन्धन टूटे। निर्बन्धन होय यति भोजराज की सभा में आये। तब राणा यतिको देख कांपता मया ।
और कालिदासकूबुलाय कही-यति का तैण मेरे बूते सह्या नहीं जाय है । ताका यत्न करो । तब कालिदास
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