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प्रातिहार्य हैं। तहां दिव्यध्वनि की तो आभासा है। मानूं अब हो दिव्य ध्वनि खिरगी और सर्व प्रातिहार्य पाइये है । तिनके दर्शन किये पाप नाश होय है। इस मानस्तम्भ की प्रभा आकाश विषै योजन पर्यन्त उद्योत करें है। तिसके देखते आश्चर्य उपजे है। ताके अतिशय करि इन्द्रादिक देवन का मान नहीं रहे। सर्व का मान जाय । सर्व नमस्कार करें हैं। ऐसो महिमा धरै है । तातैं याका नाम मानस्तम्भ है। ऐसे सामान्य मानस्तम्भ का स्वरूप कहा। ऐसे ही च्यारों दिशान के मानस्तम्भ का स्वरूप जानना । तिन मानस्तम्भ के कोट मैं च्यारों दिशा में च्यारि च्यारि बावड़ी हैं। तहाँ पूर्व दिशा के मानस्तम्भ सम्बन्धी बावड़ीन के नाम-नन्दा, नन्दोत्तरा, नन्द्रवती और नन्दघोषा । दक्षिण के मानस्तम्भ सम्बन्धी बावड़ोन के नाम -- विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता । पश्चिम दिशा सम्बन्धी मानस्तम्भ की बावड़ीन के नाम - अशोक, सुग्रतिबुद्धा, कुमुदा और पुण्डरीकणी। आगे उत्तर दिशा सम्बन्धी मानस्तम्भ को बावड़ीन के नामनन्दा, महानन्दा, सुप्रबुद्धा और प्रमङ्करी । ऐसे च्यारि दिशा सम्बन्धी च्यारि मानस्तम्भ की सोलह बावड़ी जानना। इन एक-एक बावड़ी के बाह्य मुख पर दोय-दोय कुण्ड हैं तहां के जल हैं भव्य जीव पाद प्रक्षालन करें हैं। बावड़ी जल हैं, प्रतिमाजी का अभिषेक होय है। ये सर्व बावड़ी हैं, सो स्वर्ण-रत्नमयी हैं। रत्नमयो पगथेन (पैंड़ोन) करि सहित, चौकोर हैं। निर्मल जल करि भरी, कमलन करि शोभायमान हैं। ऐसे मानस्तम्भ का सामान्य स्वरूप कह्या आगे नाट्यशाला का संक्षेप स्वरूप कहिये है --तहाँ प्रथम गली के दोऊ पार्श्वन को, दोय नाट्यशाला हैं। सो तीन खण्ड की हैं। तहाँ एक-एक नाट्यशाला विषै ३२ अखाड़े हैं। एक-एक अखाड़े में ३२ ३२ भवनवासिनी देवी नृत्य करें हैं। एक-एक नृत्यशाला के दोऊ पावन विषै, दोय-दोय धूप घड़े हैं और ये नृत्यशाला, रत्नमयी अनेक शोभा सहित हैं। ऐसी ही रचना सहित चौथी गली विषै, नृत्यशाला हैं। विशेष यता है । जो यहां कल्पवासिनी देवियां, नृत्य करें। ऐसे ही छुट्टी गली विषै, नाट्यशाला हैं सो पांच खण्ड को हैं । यहाँ ज्योतिषी जाति की देवांगना नृत्य करें हैं। ऐसे नाट्यशाला कहीं । सो यहां अपने-अपने नियोग प्रमाण, भक्ति को भरी देवी, नृत्य करि, अपना भव सफल करें है आगे रत्न स्तूप का स्वरूप कहिये है-तहां सप्तवीं गली विषै एक-एक दिशा विषै, नौ-नौ रत्न स्तूप हैं । सो ये रत्न राशि समान, उत्तुङ्ग शिखर को धरें हैं । तिनके बोच में २०० तोरण हैं। तिन स्तूपन के अग्रभाग पर,
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