Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 598
________________ + सु [ fi ५९० ऐसे च्यारों दिशा विष च्यारि जाति के देव, द्वारपाल हैं सौ सर्व महाभक्तिमान मये, हाथनमें असि लिये हैं। केई स्वर्ण को छोड़ो लिये हैं। केई गुर्ज लिये हैं। कई दण्ड लिये खड़े हैं। ऐसे दरवाजेन का स्वरूप कह्या । अब प्रथम भूमि की गली विषै, मानस्तम्भ है। ताका स्वरूप कहिये है सो प्रथम गली के मध्य विषै व्यारि-व्यारि द्वार सहित तीन कोट हैं। ते कोटन के द्वार, अनेक घण्टा, ध्वजा, मालान करि शोभनीय हैं। तहां प्रथम-दूसरे कोट और दूसरे-तीसरे कोट के बीच विषै वन है। सो वन, अनेक शुभ वृतन करि शोभायमान हैं। तहां कोयल, मयूर आदि अनेक पक्षीन की ध्वनि होय रही है। तिस वन विषै लोकशल देवन के नगर हैं। तहां प्रथम वन की च्यारों दिशा विषै, एक दिशा में इन्द्र-लोकपाल का भवन है। दूसरी तरफ, यम नामा लोकपाल का नगर है। तीसरी तरफ वरुण नामा लोकपाल का नगर है। सौी तरफ कुनैर नाला नगर है। ऐसे प्रथम वन के अन्तराल का कथन किया और दूसरे-तीसरे कोट के दूसरे अन्तराल में एक तरफ अग्नि जाति के लोकपालन का नगर है । एक तरफ नैऋत्य जाति के देवन का नगर है। एक तरफ पवन कुमार देवन का नगर है। एक तरफ ईशान जाति के देवन का नगर है। ऐसे ये तीन कोठन के दोय अन्तरालन के नगर कहे। तीसरे कोट के आभ्यन्तर में तीन कटनीदार ऊपर-ऊपर तीन पीठि हैं। सो प्रथम पीठि तो पत्रा समान हरा है । तापै दूसरा पीठि स्वर्णमयी है । तायें तोसरा पीठि अनेक रत्नमयो है । तिनको ऊँचाई वृषभदेव के हाथ तें आठ धनुष तो प्रथम पीठि की है। ऊपर को दोय पीठि च्यारि च्यारि धनुष की हैं। तीर्थङ्करन के होन-क्रम की हैं। अब इन पीठिन की चौड़ाई कहिये है सो नीचले दोय पीठिन को चौड़ाई तो अन्य ग्रन्थ तें जानना। ऊपर के तीसरे पीठि की चौड़ाई वृषभ के २००० धनुष की है। तीर्थङ्करन के हीन क्रम को हैं। तहां तीसरे पीठि में मानस्तम्भ है सो मानस्तम्भ नीचे से तो चौकोर और ऊपर हैं गोल है। तहां नीचे तो वज्रमयी है मध्य में स्फटिकमयी और ऊपर पत्रा समान हरा है। ताकी दोय हजार धारा हैं। जैसे—स्तम्भ के पहलू होय तैसी धारा हैं। सो मानस्तम्म घण्टा मोतीमाला कल्पवृक्षन के फूलन की माला ध्वजा इन आदि अनेक रचना सहित शोभा कौं धरें है। तिस मानस्तम्भ के ऊपर भाग में च्यारि दिशाओं में च्यारि अर्हन्त बिम्ब हैं। सो अष्ट प्रातिहार्यन करि सहित हैं। अशोक वृक्ष, पुष्प वर्षा, दिव्य-ध्वनि, चमर, सिंहासन, मामण्डल, देवन के किये दुन्दुमी शब्द और छत्र - अष्ट ५९० 有 णौ

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