Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 596
________________ X विष, फुलवाड़ी है। जो नाना प्रकार वृक्ष, फूल बेलि करि शोभायमान है अरु चौथो भूमि विष, उपवन हैं। सो च्यारि दिशान विषै च्यारि उपवन हैं। तिनके नाम- अशोक वन, सप्तपण-वन, चम्पक- वन अरु आम्रवन—ये वन, नाना प्रकार उत्तम वृक्ष करि सहित हैं और इन वन विषै, नाना प्रकार के देव-क्रीड़न के मन्दिर हैं तथा ये वन, नृत्यशाला बावड़ी, क्रीड़ा पर्वत, तिनकरि शोभनीय हैं इत्यादिक और भलो रचना जाननो । तहां अशोक वन विष, अशोक नाम चैत्यवृक्ष है। ताके चौतरफ, तोन कोन के भीतर, तीन पीठि हैं। तायें, अशोक वृक्ष है ताके मूलभाग विष, च्यारों दिशा में, च्यारि अर्हन्त प्रतिमा हैं। तिन प्रतिमा जी के आगे एक-एक मानस्तम्भ है। ऐसे और तीन वनन में - सप्तपर्ण चैत्य वृद्ध सप्तपर्ण-वन में है। चम्पक- वन में चम्पक चैत्य-वृक्ष । आम्र-वन में आम्र चैत्य - वृक्ष | ऐसे वन की रचना जाननी और इस वन की बावड़ोन के जल करि स्नान कीजिए, तो एक भव की अगली - पिछली दीखें और बावड़ोन के जल में देखिए, तौ अपने सात भव को अगली - पिछली दीखे हैं। पश्चमभूमि विषै, ध्वजान का समूह है। तहां एक दिशा सम्बन्धी ध्वजा कहिए हैं – सिंह, हाथी, वृषभ, मोर, माला, आकाश, गरुड़, चक्र, कमल और हंस-इन दश जाति की ध्वजा हैं सो एक-एक चिह्न को, २०८ महाध्वजा हैं। इन एक-एक महाध्वजा सम्बन्धी १०८ छोटी ध्वजा और जाननो। ऐसे एक दिशा सम्बन्धी ध्वजा कहीं । उधारों ही दिशा सम्बन्धो मिलाइए, तौ ४७०८८० ध्वजा होंय ते सर्व ध्वजा, रत्नमयो दण्डन करि सहित हैं। ते दण्ड, वृषभदेव के ८८ अंगुल चौड़े हैं। परस्पर ध्वजा का २५ धनुष अन्तराल जानना और छुट्टी भूमि विषै, कल्पवृक्षन के वन तह - बासन, गृह, आभूषण, वस्त्र, भोग, पान, ज्योतिष, माला, वादित्र और दीपक —ये दश जाति के वन हैं सो च्यारि दिशा में, ४ ही वन हैं। तहाँ एक-एक दिशा में, एक-एक वन में, च्यारि चैत्य वृक्ष हैं। तिनके नाम - मेरु, मन्दार, पारजाति और सन्तानक—ये च्यारि कल्पवृक्ष, चैत्य वृक्ष हैं। इनका विस्तार वर्णन, पीछे अशोक चैत्य वृक्ष का कथन करि आए हैं, तहां समान जानना । एता विशेष है, जो यहां सिद्ध-प्रतिमा विराजमान हैं । सर्व वापी, मन्दिर, क्रीड़ा पर्वतादि सर्व रचना, यहाँ-वहां समान जानना और सातवीं भूमि विषै, रत्नमयो मन्दिरन को पंक्ति, वन को अनेक शोभा सहित है। तहां देव-देवी, भगवान का गुणगान करें हैं । आठवां भूमि में १२ सभा हैं। तहां तिस पृथ्वी सम्बन्धी च्यारि अन्तराल, तिनमें दोय- दोय तो गली की वेदी हैं १८६ त + जि णी

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