Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 594
________________ प्रो ५८६ दर्शन किये नाम लिये, स्मरण किये, पाप नाश होय, पुण्य संचय होय। रौसा जानि. ग्रन्थके अन्त मङ्गलक, अनेक शास्त्रका रहस्य लेन समोवशरणका स्वरुप कहिये हैं-तहां प्रथमही समोवशरणको भूमि, समभूमि ते ।। || ५००० धनुष आकाशमें ऊची है। ताके च्यारों दिशा विष, समभूमि ते लगाय, समोक्शरण भूमि पर्यंत, बीस हजार पैंडी, च्यारो दिशाओंमें हैं । ते पैंड़ों (सोढ़ी) स्वर्णमयी हैं । सो पड़ों, वृषभदेवके हाथसे एक हाथ चौड़ी एक हाथ ऊ चौं, और एक कोस लम्बी हैं। और अन्य-जिनकी, क्रम तें होन हैं। सोहीनका प्रमाण कहिये हैं। वृषमदेवका जो प्रमाण है तामें २४ का भाग दीजिये, तामें से एक भाग घटावना। ऐसे नेमिनाथ तक, एक एक भाग घटावना । और पार्श्वनाथ व वीरके तिस ते आधा भाग घटावना सो समभूमि ते २॥ कोस आकाशमैं जाईये। तहां वृषभदेवकी बारह योजन, नील रनमयो गोल-शिला है। सो तो समोवशरणकी समभूमि है। या पै सर्व रचना है। और तीर्थकरनके समोवशरणका हीनक्रम है। सो नेमिनाथ पर्यंत आधा-आधा योजन, हीन है। पार्श्वनाथ वोरका पाव-पाव योजन घटता है। ऐसे महावीरका, २ योजनका समोवशरण है। तिस शिला विषे, शिवाननको सीध मैं ४ गली, च्यारों दिशामें हैं। ते गली, शिवानन (भगवान)को लम्बाई प्रमाण चौड़ी हैं। जैसे वृषभ देवको शक कोस चौड़ी, लम्बी २३ कोस गलों हैं सो धूलशालके दरवाजे तें लगाय, गंधकुटीके द्वार पर्यन्त लम्बाई जानती। और इन गलौनके दोऊ तरफ, स्फटिकमणिमयी भीति हैं। इनको वेदो कहिये। इन दोऊ वेदीनके बोचि जो चौड़ाई, सो गलीको चौड़ाई है और उन वैदीन की चौड़ाई वृषभदेवके हाथ ते ७५० धनुष है। और जिनकी होन है। तिन गलोनके बोचि,४ अन्तराल रुप ममि हैं। तिम विष, ४ कोट व ५ वेदी हैं। अरु इन नवके अन्तराल विर्षे, भूमि है सो शिलाकै अन्तभाग विर्षे कोट है। ताके परे, चैत्यप्रसाद नाम भूमि है। ताके परे, वेदी है। ताके परं खातिका की भूमि है। ताके परे वैदी है। ताक परे, पुष्पवाडीको भूमि है। ताके परे, दुसरा कोट है। ताके परे, उपबनकी भूमि है। तावे परे, वैदी है। ताके परे, ध्वजा-समूहकी भूमि है। ताक परे, तीसरा कोट है । ताक परे, कल्पवृक्षको भूमि है । ताक परे, वेदो है। ताक परे, मन्दिरकी भूमि है। ताके परे, चौथा कोट है । ताके परे, सभा को भूमि है। ताके परे, वेदी है। ऐसे तिन गलिनके अन्तराल रूप भूमि वि. रचना जाननी। तिन गलिन वि.४ कोट व ५ वैदीनके द्वार हैं सो एक गली सम्बन्धी, नव द्वार हैं। च्यारों

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