Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 597
________________ ५०१ और दीय-दोय तिनके बोचि स्फटिक मणिमयी मोति हैं। इन च्यारों भीति के बोचि, तीन अन्तराल हैं। सो हो तीन कोठे। ऐसे च्यारों दिशान के, १२ कोठे भए अरु २६ भोति भई । तहाँ रत्न-स्तम्भ हैं तिनपै घरचा श्रीमराडर है। मोती की माला, रत्न घण्टा, धूप घटादि अनेक रचना सहित है और जगह तें, यहां रचना उत्कृष्ट है। तहाँ १२ सभा के, बारह कोठे हैं। तिनमें अनुकमत-मुनिराज, कल्वासी देवी, मनुष्यणी, ज्योतिषी देव की देवियों, व्यन्तर देव की देवियां, भवनवासिनी देवी, भवनवासी देव, व्यन्तर देव, ज्योतिषी देव, कल्पवासो देव, मनुष्य और बारहवीं सभा में तिर्यच बैठे हैं। ऐसे अष्टमी भूमि में १२ सभा कहाँ। अब इन आठ भूमिन की गली का विशेष कहिग - प्रथम हो निशाल कोट है। ताले दरमाप्त हैं। तिनके क्रम तें नाम कहिए हैं-पूर्व दिशा का विजय, दक्षिण दिशा का वैजयन्त, पश्चिम दिशा का जयन्त और उत्तर दिशा का अपराजित--ऐसे नाम हैं। च्यारि कोट व पांच वेदीन के, छत्तीस द्वार, च्यारों दिशा सम्बन्धी हैं । तामें धूलिशाल कोट के च्यारि दरवाजे तो स्वर्णमयी हैं। बोधि के दोय कोट ४ वेदी इन छः के २४ दरवाजे, रूपामयी हैं। चौथा स्फटिक मणि का कोट अरु आभ्यन्तर की वेदी के द्वार जाठ, सो पत्रा समान हरे हैं। इन सर्व छत्तीस ही दरवाजेन के आम्धन्तर-बाह्य दोऊ तरफ, मङ्गल-द्रव्य और नवनिधि के समूह है। तहां एक द्वार के, दोय पार्व हैं सो ही बाह्य-प्राभ्यन्तर करि, ४ पार्श्व भए सो एक-एक पार्य के विर्षे, जाठ-आठ मङ्गल द्रव्य है सो एक-एक मङ्गल द्रव्य, २०५होय हैं । जैसे-छत्र २०८,चमर १०८, ऐसे ही सर्व जानना । नौ निधि, नव जाति की हैं सो एक-एक जाति की निधि, एक सौ आठ-एक सौ साठ हो हैं ऐसी जानना । सो एक-एक पार्श्व विर्षे, राती रचना जाननी धूप-घट हैं। तिनमें सुगन्ध-द्रव्य, देवादि खेवे हैं । तिनमें महासुगन्ध प्रगट होय रही है और सर्व द्वारन, रत्नमयी तोरण हैं। ते मोती-माला कल्पवृक्षन के फूलन की माला, रत्र घण्टा इत्यादिक रचना सहित हैं । सो तोरण द्वार, कोटन ते ऊँचे जानना। तोरण ते, कोटन के दरवाजे ऊँचे हैं। समवशरण के एक तरफ के नौ द्वार हैं। तहां धूलिशाल से लगाय, तीन दरवाजेन पै तो, ज्योतिषी द्वारपाल हैं और दोय द्वारन के ऊपर, यक्ष जाति के व्यन्तर देव द्वारपाल हैं। अगले दोय द्वारन पै द्वारपाल, नागकुमार-भवनवासी देव है और दोय द्वारन के ऊपर द्वारपाल, कल्पवासी देव है।

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