Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 600
________________ श्री सु [ fir ५९२ अर्हन्त प्रतिमा विराजमान है। सो तहां अष्ट-भ्रष्ट मङ्गल द्रव्य व प्रातिहार्यन सहित हैं। छत्र, चमर सिंहासनादि अनेक अतिशय पाइये हैं। ऐसे स्तूप का संक्षेप कथा या प्रकार इन पृथ्वीन की रचना कही । पञ्चम वेदी के आभ्यन्तर-मध्य विषै तीन पीठि हैं। सो ऊपर-ऊपर गोल हैं। सो प्रथम पीठि आठ धनुष ऊँचा है। सो वैडूर्य रत्नमयी हरा जानना और दूसरा पीठि स्वर्णमयी, ४ धनुष ऊँचा है। तीसरा पीठि, अनेक रत्नमयी, च्यारि धनुष ऊँचा हैं। तहां प्रथम पोठि की, सोलह पगया है। दोय पीठि की ८-८ पगथली हैं। तिन पीठि की चौड़ाई वृषभ देव के समय, प्रथम पीठि दोय कोस चौड़ाई सहित है और जिनराज के होनक्रम है। प्रथम पीठि विषै चारों दिशा में व्यारि यक्षदेव, मस्तक पै धर्मचक धेरै, दोय हस्त जोड़े, विनय तें खड़े हैं। ता धर्मचक्र के १००० आश हैं । पहिआ ( चक्र ) के आकार, गोल है। ताके तेज के आगे अनेक सूर्य, मन्द भास हैं। तहाँ प्रथम पोठि पैं, अष्ट मङ्गलद्रव्य हैं और गणधरदेव, इन्द्र, चक्री आदि भक्तजन हैं, सो इस प्रथम पोठि पै चढ़ि, जिनदेव की पूजा भक्ति करें हैं। आगे नहीं चढ़ें। पूजा करि, पोछे पायन, पगथेन की राह उतरें हैं। सो अपनी सभा में आय लिदैं हैं। दूसरे पीठि में आठ ध्वजा हैं। तिन ध्वजान में चक्र, हस्ती, सिंह, माला, वृषभ, आकाश, गरुड़ और कमल इनके आकार हैं अरु यहां भी मङ्गल-द्रव्यादि अनेक रचना है और तीसरे पीठि पै गन्धकुटी है। सो कार है। सो गन्धकुटी वृषभदेव के समय को ६०० धनुष चौड़ी है। इतनी ही ऊँची व लम्बी है और जिनके होनक्रम की है। सो गन्धकुटी अनेक मोती-माला कल्पवृक्षन के फूलन की माला रत्नमाला अनेक जाति की ध्वजा सुगन्ध द्रव्यादि सहित शोभायमान है। तार्ते याका नाम गन्धकुटी है। ताके मध्य सिंहासन है। सो स्फटिक मणिमयी, निर्मल है। अनेक रत्न जड़ित, शो" है । अनेक घण्टान करि शोभायमान है। ताके च्यारि पान की जायगा, च्यारि रत्नमयी सिंहन के आकार हैं। सो बैठे सिंहाकार हैं सो मानूं प्रत्यक्ष जीवित ही हैं। तथा मानो भगवान् की भक्ति करने कों श्रावक व्रत के धारी, सौम्य भावना सहित, धर्म-श्रवण कौं आये हैं। ऐसे सिंह बैठे हैं। तातें यात्राौं सिंहासन नाम दिया है। ता सिंहासन के मध्य, कमल है। ता कमल पर, अन्तरिक्ष भगवान् विराजमान हैं। सो कमल, हजार पाखुड़ी का लाल वर्ण सहित है। ताकी कर्णिका पै, भगवान् विराजे हैं । तिनकं बारम्बार हमारा नमस्कार होऊ । अब इस ही समवशरण के कोट, वेदी आदि रचना की ऊँचाई ओई ५९२ त यी

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