Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 586
________________ श्री सु 1 fr ५७८ होंगे 1 मर कर नरक-पशू होंगे। तहाँ हो के आय उपजैंगे। दोय शुभ-गति का आवागमन, आर्यखण्ड तैं मिट आर्यखण्ड के जोव महादुखी होंगे। ऐसे अवसर्पिणी का पञ्चमकाल पूरा होय। ता पीछे घट्ट काल के २१ हजार वर्ष, महादुख तें पूर्ण होंगे। पोछे जब छट्ठो काल के, ४६ दिन बाकी रहेंगे। तब सात दिन, खोटो वर्षा होयगी । तिनके नाम - अति तीव्र पवन को वर्षा होय । ता करि सर्व पर्वत पातउवा (पत्ता) की नई उड़ेंगे । २ । बहुत शीत को वर्षा । २ । खारे जल की वर्षा | ३| जहर की वर्षा । ४ । वज्रानि की वर्षा || बालू-रज की वर्षा |६| धूम को वर्षा ताकरि अन्धकार होयगा | ७| इन सात वर्षान हैं, इस क्षेत्र में प्रलय होयगा । ऐसे सामान्य सवसर्पिणी का व्याख्यान किया। आगे उत्सर्पिणी का काल लगेगा। तहां छट्टो काल लगते हो भलो वर्षा होगी। ताकरि पृथ्वी रस रूप होगी। भागे एलय में केई जीव, विद्याधर देवों ने, कर ( हाथ में ) लेय गङ्गा-सिन्धु नदी के तट, विजयार्द्ध की गुफा में जाय धरे थे सो अब साता भये आयेंगे। तिन करि फेरि रचना होयगी । तहाँ उत्सर्पिणी का प्रथम काल लगेगा। तांमें रीति, छुट्ट कैसी होयगी। परन्तु या छुट्टी काल में आयु-काय की वृद्धि और ज्ञान की बधवारी होयगी। ऐसे घट्ट े काल कैसे २१ हजार वर्ष पूर्ण होंयेंगे ? तब फिर पांचवा अरु उत्सर्पिणी का दूसरा काल लगेगा। ताके इक्कीस हजार वर्ष तामें २० हजार वर्ष व्यतीत भये जब एक हजार वर्ष बाकी रहेगा। तब उत्सर्पिणी काल के चौदह कुलकर होंगे। तिनके नाम — कनक, कनकप्रभ, कनकराज, कनकध्वज और कनकपुञ्ज ये पांच तो कनक (सोना) समान तन के धारी होंगे। नलिन, नलिनप्रभ, नलिनराज, नलिनपुञ्ज और नलिनध्वज- ये पांच कमल के समान तन के धारी होंयगे। शेष पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मपूज्य और पद्मध्वज-ये चौदह कुलकर, पांचवें काल के अन्त में होंयगे। फेरि, चौधा काल लगेगा। सो कोड़ा कोड़ो सागर का तामें, चौबीस तीर्थंकर होंगे। तिनके नाम महापद्म, सुरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, सर्वात्मभूत, देवपुत्र, कुलपुत्र, उदक, प्रौष्टिल, जयकीर्ति, सुव्रत, अरहनाथ, पुण्यमूर्ति, निःकषाय, विपुल, निर्मल, चित्रगुप्त, समाधिगुप्त, स्वयंप्रभ, अनुवृत्तिक, जय, विमल, देवपाल और अनन्तवीर्य — ये चौबीस-जिन, उत्सर्पिणी के चौथे काल में, धर्म-तीर्थके कर्त्ता, मोह अन्धकार के दूर करवेकौं सूर्य समान होंयगे । इति आगामी चौबीस जिन। आगे आगामी बारह चक्रवर्ती के नाम कहिये हैं- भरत, दीर्घदत्त जयदत्त, गूढदत्त, श्रीषेण श्रीभूति, ५७८ रं गौ

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