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ही कहिर है-विज्ञानता, क्षमावान, जदत्त त्याग, अष्ट मूल गुणधारक, लोभ रहित, शुभाचारी, समिति धर, शीलवान् और त्याग गुण। भावार्थ:--विज्ञानता जो नाना प्रकार विशेष-गुणनको सावधानीराखना । क्षमावान होय, तपस्वी |५३॥ होय । दया सहित,आप समान सब जीवनका जाननहारा होय । उदार चित्त होय । सर्वज्ञ भाषित शास्त्रनका धारी पण्डित होय। यथा योग्य देव-गुरु-धर्म व आप सम, जाप तें लघु, इत्यादिक सर्वको विनयमैं समझता होय । आपका हृदय विनयवान् होय। इन आदिक विशेष ज्ञानवान होय सो विज्ञान लक्षण है।शदूसरा नमागुरा सो शांत स्वभाव हो श्री नहीं होः । सभी महलका इञ्छुक होय । अदेखसका नहीं होय। क्रोध, मान, माया, लोभ, पाखंडका त्यागी होय। कषायो नहीं होय । इत्यादिक गुणी. सो क्षमा गुण है। २. बदत्तका त्यागी होय । राह पड़ या द्रव्यों नहीं छोवें। बिना दिया, किसीका गड्या, धरया, भल्या धन लेय नाही। इत्यादिक चोरीका त्यागी होय सौ तीसरा अदत्त-त्याग गुण है।३। मूल गुणका धारी होय । ऊमर, कठूमर, पाकर, फल बड़ फल, पीपल फल, ए पांच उदंबर। मद्य, मांस, मदिरा, ए तीन मकार। सब मिल बाठ भए । सो इन आठनका त्याग, सो अष्ट मूल गुण हैं सो इन गुपनका धारी होय । रात्रि-भोजनका त्यागी होय। इत्यादिक समक्ष्य कन्द-मूलका त्यागी होय सो चौथा अष्ट मूल गुणाधारक गुण है।8। निर्लोभता-सी परिग्रह तृष्णाका त्यागी होय। संतोषी होय। अहङ्कार, ममकार जो मैं ऐसा, मोसा कोई दूसरा नाहीं, सो महतार है। यह मेरी. वह मेरी, तन, धन, पुत्र, स्त्री, घर, मेरा-ऐसा कहना सो ममकार है। जो ऐसे भावनका त्यागी होय । सो निर्लोभता पश्चम गुण है। ५। शुभाचारी होय । जो पूजा जप तप संयम सूं रहना। अयोग्य खान-पानका त्याग भला भोजन देखके लैना। इत्यादिक शुभक्रिया करि रहना। सो शुभाचार है। अनछना जल पावे नाहीं। ऐसे जल ते सपरे (स्नान करे) नाहीं। नदी, सरोवर बावरी कूपमें कूदके स्नान करै नाहों। इत्यादिक मले गुरा धारे। सो : शमाचार नाम छदा गुण है। ६ । सातवां समिति गुण-से धरती पै चले तो नीची दृष्टि कर देता चाले। अपनी दृष्टिमें छोटे-मोटे जीव आवै। तीन कं दया भाव करि बचावता चाले। फर्द्धमुख करि नाही चाले। शीघ्र शोघ्र नाहीं चाल । राह चलते इत उत नहीं देख भागै नांहीं। भाषा बोले सो बिचारके बोले। भोजन के समय बोलें नाहीं, लड़े नाही, काहू को गालो नहों काहै। इत्यादिक शुद्धता सहित देखके भोजन लैय । वस्तु कहीं से