Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 547
________________ ऐसा वस्त्र पहिरै। शरीरकू चन्दन अरगणा तैल फुलेल इतरादिक सुगंधित वस्तु नहीं लगावै ताम्बूल पान नहीं साय। और संसारके मोही प्रमादी कुशीलवान् जीव तिनकी सो नाई निशंक होय निद्रा नहीं करें। कामी पुरुषकी नाई विषयनमें मोहित नहीं होय। भोगाभिलाषी कामी पुरुष तिनके मुखसं स्त्रीनकी कथा राग भाव सहित नहीं मनै। आने मुख ते काम कथा स्त्रीनके गुण रूप भोगकी कथा नहीं कहै। क्रोध मान माया लोम तजनका उपदेश औरनकं देय। अपने तन वै श्रृङ्गार नहीं करें। हस्ती घोटक पालकी रथादि बाहन पे नहीं चहै। दयाके हेत पांव प्यादा धरती शोधता चले। दन्त नहीं धोवे। इत्यादिक अपना ब्रह्मपद जो ब्रह्मचर्य तार्क रक्षा करता भलो क्रिया करै। प्रभात व शाम दो वखत, संध्या नहीं चूके। इन क्रियान सहित होय सो ब्रह्म सत्पुरुष करि शुश्रूषा योग्य होय है। रा लक्षरा क्रिया ब्रह्मके कहे। और इन क्रिया रहित होय सो क्रिया ब्रह्म नाहीं। जो कुशील भाव क्रोध मान माया लोभकू लिये अहंकार ममकार सहित होय सो शीलवान् करि शुश्रूषा नहीं पावै। दोष सहित है। ए गुण जाम नहीं होंय सो कुल ब्राह्मण है क्रिया ब्राह्मण नाहीं ऐसा जानना। इति व्यास वचन । आगे मार्कण्डेय कृत सुमति शास्त्र तामैं ऐसा कहा है। कि जो दिनके प्रथम पहरमें भोजन करे सो देव भोजन है। दूसरे पहर में भोजन करै सो ऋषीश्वरका भोजन है। तीसरे पहरमें भोजन करै सो फितनका भोजन करै। चौथे पहरमें भोजन करे सो दैत्यनका भोजन करे। तातें दिनका अष्टम भाग च्यारि घड़ी बाकी रहै। जब सूर्यकी कांति मंद होय । तब से उत्तम आचारी ब्रह्मचर्यका धारी भोजन नहीं करे। अरु कदाचित् करें तो अपने ब्रह्मचर्य पदक द्रषित करे। ऐसा जानना। आगे शिव पुराणमैं कहा है। जो उत्तम ब्रह्मव्रती राती वस्तु नहीं खाय। बैंगन, गाजर, मूली, आदी, सरन, मधु, मद्य, मोस इत्यादि अभक्ष्य वस्तु नहीं खाई। ब्रह्मना धारी उत्तम जीव नहीं खाय और कदाचित लोभ धारि के खाय तो जो बारह वर्ष दान पूजा जप तप किये तिनका फल मिटि जाय। तातें ब्रह्म भक्त रातो वस्तु नहीं खाय मागे और पुरासनमें भी कहा है। जो कृष्ण | महाराज, युधिष्ठिरजी सूं कहें हैं। भो युधिष्ठिर! मेरा भक्त होयके ब्रह्मती कंद-मुल खाय। तो दया पूजा दान, इन्द्रिय-मनका जीतना, ये सर्व क्रिया विफल होय। तातें मेरे भक्त कौ कन्द-मूल तजना योग्य है। और काश्यप मुनिके वचन हैं। जो ब्रह्मभक्त पूजा करे तो तब सुफल है। जब कन्द-मूल नहीं खाय। थाके

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