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जिन के कहे ।२३। महावीर-जिनके, चौदह हजार यति हैं। चौदह पूर्व के धारी, तीन सौ। शिष्य जाति के मुनि, नौ हजार नौ सौ । अवधिज्ञानी, तेरह सौ। केवली, सात सौ। विक्रिया ऋद्धि के धारी, नौ सौ। विपुलमति मनः पर्यय ज्ञानी, पांच सौ। वादित्र ऋद्धि के धारो, च्यारि सौ। ये चौदह हजार मुनि, वर्द्धमान-जिन के कहे।२४।। इति चौबीस-जिन के, मुनि-संघ, सात-सात प्रकार। अागे चौबीस-जिन के संघ की, आर्यिका का प्रमाण कहिये है-तहां आदि-देव के संघ की आर्यिका, तीन लाख पचास हजार। अजितनाथ की, तीन लाख बीस हजार । सम्भव, अभिनन्दन, सुमति–इन तीनों को तीन-तीन लाख, तीस-तीस हजार। प्रदाप्रम को, च्यारि लाख बोस हजार । सुपार्श्वनाथ की, तीन लाख तीस हजार। चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल-ये तीन जिन की, तीन-तीन लाख अस्सी-अस्सी हजार। श्रेयांस को, एक लाख बीस हजार। वासुपूज्य की, एक लाख छ हजार। विमल-जिन की, एक लाख तीन हजार। अनन्तनाथ की, एक लाख आठ हजार। धर्मनाथ की, बासठ हजार च्यारि सौ। शान्ति-जिन की, साठ हजार तीन सौ। कुन्धुनाथ की, साठ हजार तीन सौ। अरहनाथ की, साठहजार। मल्लिनाथ को, पचपन हजार । मुनिसुव्रत की, पचास हजार । नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, वर्द्धमान-इन च्यारि-जिन की, यथायोग्य ग्रन्थों से जानना। ये चौबीस-जिन के संघ को आर्थिका का प्रमाण कह्या । आगे श्रावक-श्राविकाओं का प्रमाण कहिये है-तहां वृषभदेव से चन्द्रप्रभ पर्यन्त, आठ तीर्थङ्करन के समय, तीन लाख श्रावक भये अरु पुष्पदन्त से लगाय, शान्तिनाथ पर्यन्त, दोय-दीय लाख श्रावक भये और कुन्थुनाथसू लेय, महावीर पर्यन्त, एक-एक लाख श्रावक । ये तो श्रावक-संख्या कही। अब श्राविका का प्रमाण तहां वृषभदेव तें लगाय, महावीर पर्यन्त यथायोग्य ग्रन्थों द्वारा श्राविका जान लेना। ऐसे चौबीस-जिन का संघ च्यारि प्रकार कहा। भागे चौबीस-जिन के शिष्य, सिद्ध भये । तिनका प्रमाण अनुक्रमते कहिर हैं---तहां वृषभदेव के शिष्य, साठ हजार नौ सौ सिद्ध भए । अजितजिन के, बहत्तरि हजार एक सौ । सम्भव-जिन के, एक लाख सत्तरि हजार एक सौ। अभिनन्दन-जिन के. दोय | लाख अस्सी हजार एक सौ । सुमतिनाथ के, तीन लाख एक हजार छः सौ। पमनाथ के, तीन लाख तेरह हजार
छः सौ । सुपार्श्वनाथके, दोय लाख पच्यासी हजार। चन्द्रप्रमके, दोय लाख चौंतीस हजार। पुष्पदन्तके.एक लाख गुन्यासी हजार छः सौ। शीतलनाथ के, अस्सी हजार छः सौ। श्रेयांस-जिन के, पैंसठ हजार छ: सौ। वासुपूज्य के,
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