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चौवन हजार छः सौं । विमल-जिनके,इक्यावन हजार तीन सौ। अनन्त-जिनके, इक्यावन हजार धर्मनाथ-जिनके, मुश्चास हजार सात सौ। शान्तिनाथके, अड़तालीस हजार च्यारि सौ। कंथ-जिनके छयालीस हजार आठ सौ। अरह-जिनके, तीस हजार दोय सौ। मल्लिनाथ-जिनके, अट्ठाईस हजार आठ। मुनिसुव्रत-जिनके, गुणतीस | हजार दोय सौ नमि-जिनके, नौ हजार छह सौ। नेमिनाथ-जिनके, आठ हजार । पाश्र्वनाथ-जिनके, छह हजार दोय सौ। और महावीर के शिष्य, सात हजार दोय सौं, मोक्ष गये। ये चौबीस-जिनके शिष्य, मोक्ष मये। तिनका प्रमाण कह्या। सो वृषभदेव ते शान्ति पर्यन्त, सोलह तीर्थकर सिद्ध लोक पधारे। तब ताई, तिनके शिष्य शनये मागाई... सोलह तीर्शकरोंकों जब तैं केवलज्ञान उपज्या। तब तँ लगाय, निर्वाण भया तब ताई, तिनके शिष्य मोक्ष गये। अरु शेष आठ तीर्थंकरोंके शिष्य, निर्वाण पीछे, महिनामें, केई शिष्य दोय महिनामें कई च्यारि मासमें केई, वर्ष में, कई दोय वर्षादिक पीछे मोक्ष गये। ऐसे सब-जिनके शिष्यनका मोक्ष जानता । आगे चौबीस-जिनका परस्पर अन्तर कहिये है-तहां वृषभदेव पीछे पचास लाख कोड़ि सागर काल व्यतीत भया, तब दूसरे अजितनाथ भये । अजितनाथ तें. तीस लाख कोड़ि सागर पीछे, तीसरे संभवजिन भये। संभवनाथके पीछे दश लाख कोडि सागरके अन्तर तँ, चौथै अभिनन्दन-जिन भये। अभिनन्दन तें. नव लाख कोडि सागर पीछे, सुमतिनाथ भये। बरु सुमतिनाथके पीछे, नब्बे हजार कोडि सागर अन्तरालमैं पदमनाथ भये। पद्मनाथके पोछे नव हजार कोड़ि सागर अन्तर मये, सुपाव भये। सुपार्श्वनाथके पीछे नौ सो कोड़ि सागर अन्तरकाल गये, चन्द्रप्रभ पीछे नब्बे कोडि सागर अन्तर गये, पुष्पदन्त हुए। पुष्पदन्तक पीछ नव कोड़ि सागर अन्तर भय, शीतल-जिन भए । शीतल-जिनके पीछ, अरु श्रेयांसनाथके बीचि अन्तर, छयासठि लाख बीस हजार वर्ष' घाटि एक कोडि सागर। श्रेयांस-जिनके पीछे चौवन सागर अन्तर भए, वासुपूज्य-जिन भए। और वासुपूज्य पीछे, तैतीस सागर अन्तर ते विमल-जिन भरा। विमलके पीछे, नो सागर अन्तर ते, अनन्त-जिन । भए । अनन्तनाथके पीछे, आधा पल्य काल व्यतीत भर धर्मनाथ भए । धर्मनाथके पीछे, पौन पल्य घाट तीन सागर अन्तर गए शान्तिनाथ भरा। शान्तिनाथ के पीछे आधा पल्यका अन्तर भए कुन्थुनाथ भए । कुन्धुनाथ के पीछे, हजार कोड़ि वर्ष घाट, पाव पल्य अन्तर गए अरहनाथ भये। अरहनाथ के पीछे हजार कोड़ि वर्ष अन्तर गर,