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पुत्र, न्याय के जहाज पृथ्वीरूपी मन्दिर के स्तम्भनकूं, च्यारि स्तम्भ ही होते भरा और श्रीरामचन्द्र के दोय पुत्र भए । तिनके नाम-लव और अंकुश इन दोय पुत्रन ने, सोताजी के गर्भ अवतार पाया। ये रघुवंशी कहाए । इति रघुवंश । आगे इन राम-लक्ष्मण के समय में जो-जो रावणादि राजा भए । तिनकी परम्पराय (वंश) कहिए है— तहां भीम नाम राक्षस ने मैधवाहनकूं, पूर्व-भव का पुत्र जानि, लङ्का, पाताल लङ्का, राक्षस-विद्या और नव रतन का हार दिया। पोछे, अनेक राजा भए । ता पीछे राक्षस नाम राजा भया । इनने राक्षसवंश चलाया। पीछे अनेक राजा भए । सां यह विद्याधरन का वंश, आकाश समान निर्मल तामें महाप्रतापी राजा सुकेत भए । ता सुकेत के तीन पुत्र भरा। माली, सुमाली और माल्यवान्। सो माली तौ, इन्द्र नाम विद्याधर से युद्ध में मारया परचा और सुमाली के रत्नश्रवा नाम पुत्र भया सो वंश का उजागर, तानै न्याय सहित राज्य किया अरु रत्नश्रवा की पट्टरानी केकसी ताके उदर तें तीन पुत्र भए । दशमुख, कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा पुत्री, पोछे विभोषण पुत्र भया। ये तीन पुत्र और एक पुत्री, स्त्रश्रवा के भए । सो ये तीनों भाई देव समान रूप, गुण व पराक्रम के धारी भए । रावण के दोय पुत्र इन्द्रजीत, मेघनाद, मन्दोदरी के गर्म तैं भए । मन्दोदरी का पिता राजा मय, महासामन्त, अनेक विद्याधरन का नाथ मया और मेघप्रभा नाम विद्याधर ताके पुत्र खरदूषण ने रावण को बहिन चन्द्रनखा, बलात्कार हरी पीछे चन्द्रनखाकूं, खरदूषण ने परणीं । यह खरदूषण भी महायोद्धा है अरु चन्द्रोदय राजा का पुत्र विराधित, सो रावण का महासामन्त है और विजयार्द्ध पर रथनूपुर इन्द्रलोक समान पुर है, सो ताका राजा संचार है। ताके इन्द्र नाम पुत्र भया सो महाबली भया । ताने अपने सेवक विद्याधरनक, देवन के नाम थापे और अपना नाम इन्द्र घरचा 1 उस महाबली ने रावण के दादा मालीकूं, युद्ध मैं मारचा । ता पोछे रावण महाप्रतापी, पराक्रमी या सो अपने दादा का बैर लेने, इन्द्रसूं युद्ध किया सो युद्ध में जीत्या । ता इन्द्र, जीवता ही पकड़ ल्याया । पीछे कही — मेरे घर पानी भरौ, तो छोडूं । तब इन्द्र नाम विद्याधर ने मान तजि कही - भरूंगा। ऐसी कही-तब इन्द्रकूं रावण ने तज्या सो इन्द्र ने संसार तैं उदास होय, राज्य तजि, दीक्षा धरी । नाना तप किए। जसपुर का वैश्रवा नाम राजा ताके कौशकी पट्टरानी महासतो ताके गर्भ तैं वैश्रवण नामा पुत्र
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