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मल्लिनाथ भये । मल्लिनाथ के पीछे चौवन लाख वर्ष अन्तर गये, मुनिसुव्रत-जिन हुए। मुनिसुव्र के पीछ, छह लाख वर्ष अन्तर गये, नमि-जिन हुए। नमिनाथ के पीछे पचास लाख वर्ष अन्तर गर, नेमिनाथ मरा । नेमिनाथके पीछे पौने चौरासी हजार वर्ष अन्तर मये, पार्श्वनाथ भए । अरु पार्श्वनाथके पोछे, अढ़ाई सौ वर्षका अन्तर पड़े वर्द्धमान-जिन भए। रोसे चौबीस जिनके तैबोस अन्तराल कहे। सो जब महावीर मोक्ष पधारे, तब चौथे कालके तीन वर्ष साढ़े आठ महिना, बाकी थे। चौथा काल ज्यालीस हजार वर्ष घाटि एक कोड़ा-कोड़ी सागरका है। तो गालीस सदार नाई मैं इक्कीस हजार वर्षका पञ्चमकाल है। अरु इक्कोस हजार वर्षका छट्ठा काल है। सो पञ्चमकालकं अन्त पर्यन्त, महावीरका धर्म है ; छठे कालमें, धर्मका अभाव है, इति चौबीस-जिन अन्तर। आगे धर्मका विरह-काल कहिय है-तहां वृषभदेवसू लगाय, पुष्पदन्त पर्यन्त तो धर्म अखण्ड चल्या। कबहूं श्रावक कबहूं मुनि कबहूं केवलझानो भया करें। तिनके प्रसाद तें धर्मोपदेश भया कर था। अन्तराल नाहीं पड़या। पुष्पदन्तके पीछे पाव पल्य तांई धर्मका अन्तर भया। और शीतलनाथके पीछे आधा एल्य ताई, धर्मका विच्छेद भया। और श्रेयांस-जिनके पीछे पौन पल्य ताई, धर्मका विच्छद भया। वासुपूज्यके पीछे एक पल्य ताई धर्मका विच्छेद हुआ। विमलनाथ-जिन भए। विमल-जिन पीछे पौन पल्य धर्मका अभाव मया पोई अनन्तनाथ भए। अनन्तनाथके पीछे आधा पल्य धर्मका विच्छेद भया। और धर्मनाथके पीछे पाव पल्य, धर्मका अभाव भया। ऐसे तीर्थंकरोंके जन्तरालमें च्यारि पल्य ताई, मनि, अर्जिका, श्रावक, श्राविका, च्यारि संघका अभाव रह्या । जिन-धर्म मिट गया। जब तीर्थकर प्रगटे, तब फेरि धर्म चल्या। ऐसा अन्तर भया। और प्रथम ते आठ तीर्थकरोंके समय, निरन्तर धर्म रखा। और पहिले तीर्थकर तें लगाय सात तीर्थकर पर्यन्त, तो केवलज्ञान रूपी सम्पदा निरन्तर चली आई ! केवलज्ञानका कबहूं अन्तर नहीं भया । चन्द्रप्रभ पीछे, नब्बे केवली मये। बाकी कालमें केवली नहीं रहे. मुनि ही रहे। पुष्पदन्तके पीछे, नब्बे केवली भये । शीतलनाथके तीर्थमैं चौरासी केतली मये। श्रेयांसके
पीछे इनके तीर्थम ७२ केवली भये। वासुपूज्यके पोछ, इनके तीर्थ में चवालीस केवली भये। विमलनाथके ५६६ | पीछे इनके तीर्थ में, चालीस केवली भये। अनन्तनाथके पीछे छत्तीस केवली भये। धर्मनाथके पीछ बत्तीस
केवली भये। कुन्थुनाथक पोछ चौबीस केवली भये। अरहनाथाके पीछे सोलह केवली