________________
निर्वाण नक्षत्र कहे । इन चौबोस-जिनमें तं शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ ये तीन जिन तौ षट्सडनाथ चकी मए। और सर्व तीर्थकर महा-मंडलेश्वर भए। तथा दीक्षा धारि निर्वाण गर । वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नैमिनाथ, पाश्र्वनाथ और महावीर ये पांच जिन तौ कुमार अवस्था में बाल-ब्रह्मचारी ही दिगम्बर भए ! ब्याह नाहीं किया। अरु राज्य भी नाहीं किया। पिताके जीवित कंवारे ही मुनि भए। सर्व जिनराज भोग्य-सम्पदा भोग यतिपति भए। सो वृषभ का तप कल्याशक विनीता पुरो विर्ष। नामनाथ का तप कल्याणक द्वारकापुरी विः । सर्वका तप कल्याणक, अपनी-अपनी जन्म-नगरीमें भया। सो मल्लिनाथ अरु पार्श्वनाथ ये दोऊ जिन तौ तप लिये पीछे, तेले-तेलेका नियम करते भये। वासपूज्य स्वामी, एकान्तर उपवास धारते भये। सर्व-जिनने वेले-वेले पारणा किया। सो श्रेयांसनाथ, सुमतिनाथ, मल्लिनाथ ये तीन जिन तो पूर्वाह्न समय दीक्षा धारतै भये। और मर्च जिन अपराह कहिये सन्ध्या समय, दीक्षा धारते भये । इति चौबीस जिनके निर्वाण-नक्षत्रादिका कथन । जागे चौबीस जिनके दीक्षाके वन कहिए हैं-ऋषभनाथ तौ सिद्धार्थ वन वि, दिगम्बर भए। महावीर ज्ञानवन विणे, यति भए। वासुपूज्यने कीड़ोद्यान नाम वन वि, मुनि-पद धरा। और धर्मनाथ वप्रका नाम वन विर्षे, यति भये । पाश्र्वनाथने मनोरमा नाम उद्यान विर्षे, परिग्रह तजा। मुनिसुव्रत जिन, नील गुफाके निकट, निन्ध भए । पौर सर्व जिन अपने-अपने नगर के निकट, आम्र-वन वि योगीश्वर भए । इति तप बन। आगे चौबीस जिन के तप कल्याणक विर्षे, गमन समय की पालकी, तिनके नाम कहिए-तहां वृषभदेवकी पालकीका नाम सुदर्शना। आगे अनुक्रम तैं जानना-सिद्धार्था, कमलामा, अर्थ-सिद्धा, अभयङ्करी, निवृत्तिकरि, मनोरमा, मनोहरा, सूर्यप्रभा, विमलप्रभा, पुष्पप्रभा. देवदत्ता, सागरदत्ता. नागदत्ता, सिद्धार्थका, विजया वैजयन्ति,जयन्ति, अपराजिता उत्तर करु, देव-कुरु, विमलामा, और चन्द्राभा। ये चौबीस-जिनके तप समयको पालकी इन्द्रों कृत कहीं। भागे चौबीसजिनकी दीक्षाकी तिथि, क्रमशः कहिए हैं। चैत्र वदी ६, माघसुदी ६, मार्गशीर्ष सुदी १५, माघ सुदी १२, वैशाख सुदी६, कार्तिक बदी २३, जेठ सुदी १२. पौष वदी १. मार्गशीर्ष सुदी १,माघ वदी १२, फाल्गुन वदी १३, फाल्गुन वदी १४. माघ सुदी ४, जेठ वदी १२. माघ सुदी १३. ज्येष्ठ वदी १३. वैसाख सुदी १, मार्गशीर्ष सुदी १०, मार्गशीर्ष सुदी ११, वैसाख वदी ६. आषाढ़ वदी १०, श्रावण वदी ४, पौष वदी ११, और मार्गशीर्ष वदी १०,