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चौरासो हजार। वासपूज्य के बहत्तरि हजार। विमलनाथ के अड़सठ हजार। अनन्तनाथ के छयासठ हजार। बननाथ चौसठ हजार । शान्तिनाथ के बासठ हजार । कुन्थुनाथ के साठ हजार। अरहनाथ के पचास हजार। मल्लिनाथ के चालीस हजार। मुनिसुव्रत के सोस हजार। नमिनाथ के बीस हजार । नैमिनाथ के अठारह हजार। पाश्वनाथ के सोलह हमार। महावीर के चौदह हजार सर्व मुनीश्वर हैं। ये चौबीस-जिन के सर्व मुनि कहे। सो मुनि का संघ सात प्रकार है-चौदह पूर्व के पाठी, सूत्र अभ्यासी, अवधिज्ञानी, केवली, विक्रिया अद्धि के धारी, विपुलमती, मनः पर्यथी और वादिव ऋद्धि के धारी-इन सात भेद रूप मुनिसंघ है। सो वृषभदेव के चौरासी हजार मुनि हैं। तिनमें चौदह पूर्व के पाठी साढ़े सैंतालीस सौ हैं। सूत्र अभ्यासी शिष्य इकतालीस सौ पचासा। अवधिलानी नौ हजार । केवलज्ञानी बीस हजार । विक्रिया ऋद्धि के धारी तीस हजारः सौ। विपुलमती मनः पर्ययज्ञानी बारह हजार साढ़े सात सौ । वादिन ऋद्धि के धारी बारह हजार साढ़े सात सौ हैं। ये सर्व मिलि चौरासी हजार आदि-देव के मुनि कहे अजित के चौदह पूर्व के पाठो तीन हजार पाँच सौ मुनि । आचाराङ्ग सूत्र के धारी शिष्य इक्कीस हजार छः सौ। अवधिज्ञानी नव हजार चार सौ। केवलज्ञानी बीस हजार दो सौ पवास । विक्रिया ऋद्धि के धारी बीस हजार च्यारि सौ पचास। विपुलमति मनः पर्यय धारो बारह हजार च्यारि सौ। वादित्र ऋद्धि के धारी बारह हजार च्यारि सौ। ये सर्व जाति के मिलि अजित-जिन के एक लाख मुनि हैं।२। सम्भव-जिन के चौदह पूर्व के पाठी साढ़े इक्कीस सौ। सूत्र अभ्यासी शिष्य-मुनि एक लास्स उनीस हजार तीन सौ। अवधिज्ञानी नव हजार छः सौ। केवलज्ञानी पन्द्रह हजार। विक्रिया ऋद्धि के धारी गुणतीस हजार साढ़े आठ सौ। विपुलमति मनः पर्यय ज्ञान के धारी बारह हजार है। वादिन ऋद्धि के धारी बारह हजार एक सौ हैं । ये तीसरे जिन का संघ सात प्रकार दोय लाख कह्या ।३। आगे चौथे अभिनन्दन-जिन के मुनि तीन लाख हैं। तिनमें चौदह पूर्व के पाठी पच्चीस सौ हैं। सूत्र अभ्यासी शिष्य दोय लाख तीस हजार पचास है। अवधिज्ञानी नौ हजार आठ सौ। केवलज्ञानी सोलह हजार। विक्रिया ऋद्धि के धारी गुनीस हणाए। विपुलमति मनः पर्यय ज्ञान के धारी ग्यारह हजार साढ़े छः सौ। वादिन ऋद्धि के धारी ग्यारह हजार। ये अभिनन्दन-जिन के तीन लाख साधन में सात भेद कहे।४। आगे पांचवें सुमतिनाथ के तीन लाख बीस हजार मुनि है। तामें चौदह पर्व