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स्पृश्य-शूद्रकौं तो क्षुल्लक व्रत होय और अस्पृश्य शूद्रकू व्रत नाहीं होय । सम्यग्दर्शनादि गुस होय हैं, सो तहाँ ऊँच-कुल का क्षुल्लक श्रावक तौ भोजन की जाय, सो गृहस्थ के चौके में ही भोजन करे और शूद्र जाति का क्षुल्लक है, सी गृहस्थ के भोजन स्थान में नहीं जाय। क्योंकि याका कुल, हीन है ताते ये धर्मात्मा, संसार से उदासीन, व्रत का धारो, धर्म-मर्यादा का जाननहारा, पुण्य-फल का लोभी, पर-भव के सुधारने की अभिलाषा जाके,परम्पराय मोक्ष का इच्छुक जन्म-मरण तें भय भीत भया है चित्त जाका ऐसा सौम्य स्वभावी-धर्ममर्ति, मार्दव-धर्म का साधनेहारा यह नीच-कुली श्रावक अपना नीच-कुल प्रगट करने कं, एक लोहे का पात्र भोजन करने के अपने पास रासै। जब कोई धर्मात्मा श्रावक इस क्षुल्लकको भोजन निमित अपने घर ल्यावै। सब यह शुद्र-कुली धर्मात्मा याके संग तहाँ ताई जाय जहां तोई काह का अटक नहीं होय । पीछे चौक में खड़ा होय रहे। तब श्रावक इनकं उत्तम जानि आगे बुलावे। तब यह धर्मो चौक मैं ही तिष्ठ पर लोह का पात्र दिखावे। तब लोह के पात्रकू देख के दाता जाने, जो यह शूद्र जाति है। तातें यह धर्मात्मा ऊंचे नहीं पाया तब दाता श्रावक, इस क्षुल्लककं भलै आदर ३. विनय सहित, अनुमोदना करता, हर्ष सहित भोजन देय। सो उस बाखर (घर) में च्यार, दो, एक घर श्रावकन के होंय, तौ थोड़ा-थोड़ा सर्व घर ते भोजन लेय। नाहीं होय तो दोय घर का एक घर का भोजन करें। अपना कुल छिपावै नाहीं । यह उत्तम व्रत का धारी श्रावक है। ऐसे ऊँच-कुल तथा स्पृश्य नीच-कुल दोय ही कुल में यह श्रावक पद होय है । २। और ऐलक पद ऊँच-कुलीकू ही होय है। यह स्कृष्ट श्रावक पद है। ऐसे सातवों प्रतिमा तें लगाय ग्यारहवीं पर्यन्त भेद कहे। सो ये त्याग ब्रह्म के भेद जानना । जैसा-जैसा त्याग, जिस-जिस स्थान मया, सो-सो नाम पाया। सी श्रावक के उत्कृष्ट त्याग की हद, ऐलक लैंगोट-मात्र परिग्रह धारी की है। याके श्रागे श्रावक भेद नाहीं। इसके पीछे मुनि का हो पद है। तातें सातवों प्रतिमा त लगाय ग्यारहवी प्रतिमा पर्यन्त श्रावकों ब्रह्मचर्य पदवी है। पीछे लँगोटी-परिग्रह परिहार भये, यति ।। का पद होय है। तातें भरत-क्षेत्र का इन्द्र, भरतनाथ, आदिनाथ का बड़ा पुत्र, भरत, चक्री, महाधर्मात्मा, ताने परम्पराय धर्म-मर्यादा चलायवेकू स्थापे सेसे ब्रह्म भेद, सो कुल ब्रह्म कहिये । था अवसर्पिणीकाल के आदि, नव कोड़ा-कौड़ी सागर काल पर्यन्त तौ भोग-भूमि वर्ती। तहां वर्ण भेद नाही. सर्व एकसे। पीछे चौदहवें कुलकर
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