________________
श्री
सु
K
ष्टि
५४३
नाना प्रकारको मार चोर भोगी, महादुखी भया । तैसे ही कुटुम्ब के निमित्त पापारम्भ करों हों. सो चोर की नाई मोकं दुःख भोगना पड़ेगा। ये कुटुम्ब दुःख के आए सर्व जाते रहेंगे। ऐसे ये शिव-सुख का अभिलाषी संसारभोग तैं उदास, ऐसा विचार । कुटुम्ब तैं अरु गृहारम्भ तें ममत्व छांड़ि, पीछे घर में अपने पुत्रादिक कूं विवेकी देख जो यह घर-भार चलायने कूं समर्थ, ताहि बुलाय कैं, प्रथम तौ ताकी हित-मित हितोपदेश देय, सन्तोषित करे। पीछे अपने चित्त का रहस्य बताय, ताकौं कहे। हे भव्य ! अबलौं' तो घर-भार हमने चलाया। अब तोकौं सपूत, सज्जन- अङ्गी, विवेकी, विनयवान् देख बड़ा हर्ष भया हमारी गृह-पालन की चिन्ता गई। सो हे धर्मो ! अब तुम इस कुटुम्बको रक्षा करौ। न्यायपूर्वक धनोपार्जन करौ धर्म सेवन कर, पर-भव सुधारो। ऐसा कहि, पोछे सर्व जाति, कुन कूं बलाश, विनय सहित दिन तक कि है पञ्च हो ! अब तोई हमने, कुटुम्ब के संग तें प्रारम्भ किया। अब हमारा मनोरथ, पर-भव सुख के निमित्त, आरम्भ रहित धर्म- सेवन का है। तुम सर्व भाईयन के सहाय हैं, यह भव सुधरथा । तुम्हारा दिया धन-यश पाया। अब इस गृह का भार, इस पुत्रक सौंप्या है, सो अब तुम, याकी प्रतिपालना करो, जैसे सर्व भाई मोर्ते धर्म स्नेह करि, मेरो प्रतिपालना करो। तैसे ही याको करो। जैसे प्रयोजन पाय, मोसे आज्ञा करों थे, तैसे इस पर करोगे। जैसे मो-भूलै कूं क्षमा-भाव करि शिक्षा देय थे, तैसे याकूं शिक्षा देय प्रवोश करोगे । तातें अब मैं तुम सर्व भाईयन तैं ऐसो विनति करों हौं। जो अब ताई आरम्भ-प्रारम्भ विषै मोर्चे कृपा करि, मोकौं यादि करके मेरा नाम ले नैवता-बुलावा भेजो थे, सो अब पञ्चायती व विवाहादिक के आरम्भ विषै या यादि करि थाके नाम न्योता - बुलावा भेजोगे । अब मैं गृह आरम्भ तैं तुम सर्व भाइयन की साक्षी हैं न्यारा हों इत्यादिक सर्व पञ्च तैं शुभ वचन कहै। तब सर्व पञ्च इनकी धीरता देख बहुत प्रशंसा कर इनका कह्या करें । तिस हो दिन तैं आप पापारम्भ का त्यागी भया । पापारम्भ तैं न्यारा होय घर विषै तिष्ठता धर्म-साधन करे। घर हो में स्तुति करता पूजा, दान, ध्यान, संयम करता काल गमावें। भोजन समय घर-जन बुलायें तब भोजन को जाय अरु अपने पदस्थ -प्रमाण परिग्रह अल्प राखे । सो आरम्भ त्यागी आठवीं प्रतिमा का धारी है। इति आठवीं प्रतिमाप आगे नववीं प्रतिमा का स्वरूप कहिये है। अब नववीं परिग्रह त्याग प्रतिमा विषै सर्व
५४३
य
रं
मि
पी