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जानता होय । रुपया, मुहुर, रत्न को परीक्षा जानता होय । अत्रादिक लेन-देन में सावधान होय । अनेक लेखे करने की जो कला व्याज फैलाना आदि ज्ञान सहित आजीविका करता होय, सो वैश्य जाति का ब्राह्मस है।६। ब्राह्मण कुल में तो अवतार लिया होय अरु पराई निन्दा करनहारा होय। पर-दोष का देखनहारा
होय । अनेक पर-स्त्री का भोगनहारा पशु समान कुशीलवान होय । पंचेन्द्रिय विषय में लोलुपी होय। अपना || यश, अपने मुख तें करता होय । अपनी सन्तोष-वृत्ति कुंतज, द्रव्य के लोभ कू अनेक स्वांग धरि, छल-बल
करि, धन पैदा करता होय । अनेक गावना, बजावना, नृत्य करनादि कला कर आजीविका करता होय । अनेक यन्त्र, मन्त्र, तन्त्रादि के चमत्कार लोगनकं दिखाय, अपने कुटुम्ब का पालन करता होय। इन लक्षण सहित होय । ताकू विजाति ब्राहाण कहिये। ७। ब्राह्मण के कुल में तो जवतार लिया होय अरु खाने योग्य वस्तु अरु ऊँच-कुलो मनुष्य के नहीं खाये योग्य वस्तु विष, विचार रहित होय । क्रोध वचन, गाली वचन, श्राप वचन, कुफर जो भण्ड वचन इत्यादिक दुर्वचन; पर-पीड़ाकारी, पापमयो, बोलने का स्वभाव होय मली-क्रिया रहित | होय । महाप्रमादी, बहुत सोवने का स्वभाव होय इत्यादिक लक्षण आमें होय, सो पशु जाति का ब्राह्मण है।८। ब्राह्मण कुल में तो अवतार घर-चा होय अरु नदी, तालाब, बावड़ीन की क्रोड़ा-तैरना-कूदना, ताकू भला लागता होय । मद्य-मांस मक्षण करता होय । बहुत हिंसा करनहारा होय । दया-धर्म शुभाचार रहित होय इत्यादिक लक्षस जामें होय, सो म्लेच्छ जाति का ब्राह्मण है। ।। और महाहिंसा का करनहारा होय। मनुष्य-पश के मारने कू निर्दयी होय। भली-भली द्विज योग्य क्रिया, तिनकरि रहित होय। हिताहित विचार करि, रहित होय। पूजा, दान, जप, तप आदि धर्म-किया करि शून्य होय। पाप परिणति सहित होय । इन आदि लक्षण सहित, सो मातङ्ग जाति का ब्राह्मण है । १०। ऐसे ब्राह्मण के दश भेद कहे, सो आचार के योग त कहे; परन्तु ब्राहलय के कुल में उपज्या है, सो जिस कुल में उपज्या होय, सी ही नाम कहना सो क्रिया चाहे जैसी करो। ब्रालय में उपज्या, ताकौं ब्राह्मण कहना, सो कुल-ब्रह्म है । या प्रकार स्वभाव-ब्रह्म, क्रिया ब्रह्म, त्याग ब्रह्म, कुल ब्रह्म-ये च्यारि ब्रह्म के मैद कहे। सो सातवी प्रतिमा धारी, च्यारि कुल का उपण्या धर्मात्मा श्रावक, सर्वस्वीका त्यागा, सौम्य मूर्ति, ये सातवीं प्रतिमा धारै । सो ये त्याग-ब्रह्म जानना।