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रित कहिये, नृत्य | अवंभ कहिये, कुशील। सणासो कहिये, खान आभूषण कहिये, गहना । पट्ट कहिये, वस्त्र । पम्माणो कहिये, इनका प्रमाण करना। इनका भावार्थ आगे कहेंगे।
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गाया — वाहण सज्जा असण, सचित संज्ञाय सप्त दस नियमो धम्मी सावयः धारय, जाम दिण पक्ष मास वस्सादि || १५४ अर्थ — वाहण कहिये, असवारी। सज्जा कहिये, शैय्या, सोने का स्थान आसरा कहिये, बैठने का स्थान । सचित्त कहिये, जीव सहित सो सचित्त । संज्ञाय कहिये, वस्तु । सत्त दस शियमो कहिये, ए सत्तरह नियम हैं । जाम दिन पक्ष मास वस्सादि कहिये, पहर-दिन पक्ष-मास वर्षादि तक धम्मी सावयः धारय कहिये, धर्मी श्रावक धारण करे। भावार्थ-भोजन, रस, पान, लेपन, फूल, ताम्बूल, गीत, नृत्य, जब्रहा, स्नान, आभूषण, वस्त्र, बान, शैय्या, आसण सचित्त और वस्तु – इन संग्रह का नियम करें। इनका अर्थ-तही गेहूँ, चना, चांवल, मूंग, मोंठ, यव, ज्वार आदि अत्र का प्रमाण जो मैं रते अत्र खाऊँगा, बाको अत्र तजे। ऐसे
भोजन की संख्या राखना, सो भोजन प्रमाण है |१| आज षट्स विषै येते रस खाऊँगा, सो अगार है। बाकी के ती। ऐसे षट् रसन में तैं, जो एक-दो-तीन व्यारि आदि रस का प्रमाण करना। सो रस नियम है | २ | पान करने योग्य जो जल, मही, दूध, ईवरस आदि वस्तुन का प्रमाण करना। जो येतो वस्तु पान योग्य राखी सो अगार है सो खाऊँगा बाकी त्यागी ऐसा प्रमाण करना, सो पान प्रमाण है । ३। येती सुगन्धी अगर, चन्दन, अगरणा, तेल, फुलेल इत्यादि इनका प्रमाण करना जो रोती खुशवीय राखी, बाकी तजी । तिनकी प्रतिज्ञा करनो, सो लेप नियम है |४| अनेक जाति के फूलनमें हैं, फूलन की संख्या राखनी, जो आज येते फूल राखे, सो सूंघना । ढाकने, पहरने इत्यादिक का प्रमाण करना, सो फूल नियम है १५ जो येते ताम्बूल राखे । सो खाना, सो ताम्बूल नियम है । ६ । आज ऐती राग सुननी । षट् राग, छत्तीस रागनी वरु तिनको जनेक भार्थी हैं, तिनमें तैं प्रमाण करें। सौ राग सुनै, बाकी नाहीं सुने । सो राग नियम है । ७ अनेक जाति के नृत्य हैं। पातरा नृत्य, वेश्या नृत्य, देवांगना नृत्य, घर-स्त्रीन का नृत्य, भाण्ड नृत्य, भवैया नृत्य, नएको नारी बनाय नृत्य, नारी नर-रूप धर नृत्य करें इत्यादिक अनेक हैं। तिनमें तैं प्रमाण करना। जो एते नृत्य आज देखने, बाकी का त्याग है सो नृत्य नियम है । पर- स्त्री का सर्वथा त्याग तो पहिले ही था अरु स्व- स्त्री
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