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पाया होय। आप गुरु जन की आज्ञा रहित रह्या होय तथा दीन जीवन पै द्वेष-भाव करि तिन कुवचन करि पोड़ा उपजाई होय । पर का धन छल-बल करि नाश कराय, सुख पाया होय इत्यादिक पाप भावन तें ऊँच कुली | होय, परन्तु धन-धान्यादि रहित, दीन दशा का धारक होय 1८६। बहुरि शिष्य पूधी 1 हे गुरुजी ! यह जीव बहुत देशान्तर भ्रम आजीविका पूर्ण करें। ऐसा किस कर्म से होय ? तब गुरु कही—जिन जीवन नैं पर-भव में दीनकों दान दिये होय, सो अनेक जगह भ्रमाय-प्रमाय दिया होय तथा दाम के दाम अन्य ग्राम मैं बताय दोनको भटकाय दान दिया होय तथा और दीनन 4 अनेक सेवा-चाकरी कराय बहत दिन तक भटकाय, पीछे दया करि दान दिया होय तथा अनेक ग्राम-देश भ्रमाय, सेवा-चाकरी कराय, पीछे धर्म जानि दान दिया होय तथा कासोदन कौं सफदेश प्रमाय, ताकी चाकरी नोंद होय तथा कसर करि दई होय तथा धर्म निमित परकौं ग्राम, धन, वस्त्र देय तिनत अनेक चाकरी कराय, बहुत देश-नगरकौं कासोद (हलकारे) को नाई भ्रमाय, तिन खेद कराया होय तथा धर्मात्मा पुरुषन के आधीन राख, अनेक देश-ग्राम अपने संग भरमाय, तिनको स्थिरता को आजीविका बताई होय तथा देशान्तर की आजीविका करनेहारे जीव की हाँ सि करी होय। आप मद करि एक जागि तिष्ठा, धन पैदा करता, मत्सर भाव करि अन्य कौं बहकाये होंय इत्यादिक अशुभ भावना सहित, भवान्तर में मनुष्य होय, तौ देशान्तर भ्रमण करि आजीविका पूरण करणहारा होय । १०। बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो ! यह जीव एक स्थान 4 तिष्ठा, आजीविका कौं अनेक धन पैदा करता, कौन पुण्य तें होय ? तब गुरु कही-जिसने पर-भव में अनेक धर्मात्मा जोवन की स्थिरता को खान-पान धन-दानादि देय निराकुल, धर्मसेवन कराया होय तथा अनेक पशु तथा दोन मनुष्य इनकौं अशक्त देख, दुःखी देख. तिनकी दया करि तिनके स्थान बैठे हो असहाय जानि, तिनके खान-पान की खबर लैघ, साता उपजाई होय तथा निर्धन धर्मात्मा जीवनकौं निराकुल धर्म सेवन करते देख, समता सहित देख, तिनकी प्रशंसा करो होय तथा औरन कौं सुख से धन पैदा | करते देख, खुशी मया होय इत्यादिक शुभ भावन ते एक स्थान में धन पैदा करि सुखी होय दश बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो! यह जीव दगाबाजी सहित आजीविका पैदा करनेहारा किस पाय त होथ ? तब गुरु कहीजाने पर-भव में दान में कपटाई करी होघ । दीन जीवन कूकपटाई सहित दान दिये हॉय । गुरुजन जो मुनि,
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