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करें हैं और विकार चित करि पर-स्त्रीन का काम काज करें। ताकी मले-भले षटभषणलाय देय। राग
सहित मुख ते वचन बोलें। ताकं पर-स्त्री का व्यसनी कहिये और जहां नारी, स्वैच्छा भई कौतुक करती होय, -'गाली-गोत गावतो होंय, तहां आप जाय, सुनि करि हर्ष को प्राप्त होय, चित देव सुनै, तिनकी प्रशंसा करै, सो
पर-स्त्री का व्यसनी है। और पर-स्त्रीन के समूह में जाय, तहाँ बैठ के तिन स्त्रीन की सहावतो बात कहै। तिनकौं अनेक कौतुक कया कहि के हँसावे-सुखो करें। सो पर-स्त्री का व्यसनी कहिये और जै पनघट-घाट, जहां अनेक स्त्री-समूह जल कौ जोय तथा और जगह जहाँ अनेक स्त्रीन के गमन का स्थान होय। ऐसे स्थान वैजाय तिष्ठना, सो पर-स्त्री का व्यसनी है तथा पर-स्त्रीन को चाल-काय सराहना, षट्-आभूषरा-रूप देख हर्ष करना, सो पर-स्त्री का व्यसनो है। अपने घर में दासो राखना तथा विधवा स्त्री की मोह के वश करि, घर में राखना। तातें भोगन को अभिलाषा पूर्ण करती। सो पर-स्त्री का व्यसनो है और बालक नर को नारी बनाय देखना तथा सुन्दर स्त्रीन कं, नर भेष बनाय. देख सुखी होय, स्पर्श करि सुखी होय सो पर-स्त्री का व्यसनी है और विधवा तथा पर-स्त्री जाका मार जीवता होय, तिनत एकान्त विर्षे बतलावना। तिनतें ऐसा कहना, जो आज कल तो हम 4 कोय है। तात नहीं बोलो हो । सो हम पै ऐसी कहानक परी है, सो कहो। हम तौ आपके आज्ञाकारी हैं इत्यादिक राग सहित वचन भाषण करे, सो व्यसन का लोभी है। अरु पर-स्त्री तें अबोला रहै, सूठना करें 1 फेरि तिसके बोलने कौं, औरन तें प्रार्थना करें। कहै जो हमकों वाकों बुलाय देव इत्यादिक भावन का धारी, इस व्यसन का धारी है और जे अपने तन में नाना प्रकार वस्त्र आमषण पहरि, पर-स्त्रोन को दिखाया चाहैं। अपना मला रुपयौवन, तनकी ललाई पुष्टता, पर-स्त्रीन कौं दिखाया चाहैं, सो पर-स्त्रो व्यसन मोही है इत्यादिक कहे जो पर-स्त्रीन के व्यसन के दोष, तिन सहित सबको त्याग, अपना व्रत निर्दोष राखै, सो पर-स्त्री व्यसन का त्यागी कहिये । इति परदारा व्यसन । ७ । ये कहे
जो सात व्यसन, सो सर्व पाप के मूल हैं। जेते जगत् के पाप हैं, तैते सर्व इन व्यसनन में गर्भित हैं । सो || जिनके उदर विषै, इन व्यसनन को वासना है। सो धर्म विमुख प्राणी, अपने भव का बिगाड़नहारा है।। | है भव्य ! ये सात व्यसन, सात नरक के दूत हैं। ये व्यसन जीव कों किञ्चित् सुख की छाया-सी बताय