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अरु हमारे-तुम्हारे वियोग होने का समय आय लग्या, सो तुम कछु चिन्ता-आर्त नहां कसा। ए जीव ऐसे ही | अनन्ते नाते करता, अनन्तकाल का जन्म-मरण करता आया। जो पर्याय पाई, सो ही काल ने हरी। परन्तु मैरी | अज्ञानता नहीं छूटी। जैसे-कोई अन्याय वा चोरी करनेहारेक, राजा अनेक दण्ड देय। पीछे और सामान्य
दण्ड तें नहीं माने, तौ मारि डारें। ऐसा कठिन दण्ड देख कर भी, यह जीव अमार्ग चोरी नहीं तजे। तौ राजा कहा करें। तैसेही राग-द्वेषादि वत्तिते अनेक पाप कार्य किरा । ताका फल बहुत प्रकार राग-द्वेष, चिन्ता, शोक, भय इत्यादिक भोगे। तो भी यह जीव पाप नहीं तजै । राग-द्वेष रूप अपराधकौं करता हो गया। तब कालरूपी राजा ने बड़ा दोषी जान, मारि डारया। तो भी रागादिक कुमार्ग, मेरा नहीं छुटा। ऐसे अनन्तकाल मोकों भ्रमण करते होय गए। जगतू मैं गया वहां भी रागादिक कुमार्गचल्या। तहां काल-राजा नै मारथा सो जब भी इस पर्याय में मैंने अनेक-अनेक राग-द्वेष भाव करि, पाप किये सो तातें कालरूपी राजा के वश भया सो मोकों काल-राजा, अब मारने का उपायी है सो मारेगा। तातें तुम मोह तजी इत्यादिक अनेक समता करि अनेक वैराग्य भावना सहित, यह सन्धासो-धर्मात्मा, अनने चित्तकौं निर्मल करिक, शुभ भावना भाय, व्यवहार नय ते कुटुम्बी-जनकौ अनेक सम्बोधन रूप हितकारी-धर्म सूचक वचन बारम्बार कहि मोह फन्दछड़ावे। हे जन हो! तुम इस पर्याय के स्नेहो हो तुम सब, चित्त देय सुनो। जो तुमने इस पर्याय ते मोह बधाय करि, अब ताई मेरी योग्य-अयोग्य क्रिया में नजर नहीं करी। अरु स्नेह बुद्धि करि, अब ताई मेरे तन की रक्षा करी। तुमने सज्जनता प्रगट करि, इस तन की प्रतिपालना करो। जैसे—स्नेह बुद्धि के धारी बड़ी बुद्धिवारे करें, सो जो तुम्हारे करने को थी, सो तुमने करी। परन्तु है प्रीतम हो। इस तन की स्थिति पूर्ण होने बाईं, सो अब ना-इलाज है। काहू को राखी रहेगी नाहीं। तातै इस शरीर से अब तिहारा वियोग होयगा। तातें तुम सबही विवेकी हो। मोह-भाव करि शोक-चिन्ता नहीं करो। अनादि ते जगत् की ऐसी ही परिपाटी चली आई है। अनेक भवन में अनेक नातान का संयोग मघा, अरु छूटा। जब भी तुम ते कुटुम्ब का सम्बन्ध भया था ये भी छूटेगा। ताः अब ताई इस तन तें. तुम्हारी ववन-काय करि, तुम योग्य विनय-क्रिया नहीं भई होय तथा अविनय भया होय, तो तुम अपनी सरल-बुद्धि करि, क्षमा-भाव करो इत्यादिक शुभ शब्दन करि सबकौं समाधान लाय,
ही