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नीचली प्रतिमा में नाहीं कह्या अरु इस छुट्टी प्रतिमा विषै रात्रि भोजन का अरु दिन विषै कुशील का अतिचार भी नहीं लागे । तातें व्रत प्रगट किया। ऐसा जानना । सो रात्रि का पिसा, पोथा, रात्रि का बांधा, संध्या, शोध्या, बांच्या, घिस्या, छाया, धोया इत्यादिक रात्रि का आरंभ्या ऐसा भोजन होय । सो छट्टों प्रतिमा का धारी नाहीं खाय और रात्रि का आरंभ्या-भोजन खाय, तो रात्रि भोजन का दोष लागें । तातैं इनमें जो कोई अतिचार सूक्ष्म, पहले नोचली प्रतिभा में लागें थे, सो छट्टो प्रतिमा में यहां नाहीं लागें हैं। दिन में अपनी स्त्री कौं देख, विकार-भाव हो जाय थे। कभी-कभी सरागता सहित वचन होय जाय थे। काय तैं कोई विकार चेष्टा होय थो। सो अब यहाँ छड्डी प्रतिमा में मन-वचन-काय करि, दोष नाहीं लागे । तातें यहां घट्टी प्रतिमा विषै रात्रि-भोजन अरु दिन कूं कुशील का त्याग का है । तातें याका नाम – रात्रि-मुक्ति-त्याग का । ६१
इति श्रीसुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थके मध्ये, एकादश प्रतिमा विषे, छुट्टी प्रतिमाका कथन करनेवाला छत्तीसवां पर्व सम्पूर्ण ॥ ३६ ॥ आगे सात प्रतिमा का स्वरूप कहिये है। थाका नाम ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। सो छुट्टी ताई तो स्व- स्त्री का त्याग नहीं है। तौ भो महासन्तोषी, परन्तु पदस्थ योग तैं अपनी परणी स्त्री कूं, स्त्री-भाव करि जानें है। जो ये मेरी स्त्री है अरु सातवीं प्रतिमाधारी के स्व-पर- स्त्री दोऊन का त्याग है, सो पर स्त्री का त्यागी तो पूर्व में था ही। स्व- स्त्री का त्याग, सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा विषै है। अब यहाँ स्व-स्त्री, पर-स्त्री दोऊन का त्यागी भया । अपनी स्त्री कौं भी विकार-क्रिया तैं नहीं देखें। इस प्रतिमा विषै महाशील व्रत का धारी, ब्राह्मण - ब्रह्मचर्य व्रती भया। अब यहां चेतन-अचेतन स्त्री का त्याग भया । तातें इस प्रतिमाधारी कों, ब्रह्मचारी का है। सो यहां ब्रह्म शब्द के च्यारि भेद हैं। सो ही कहिये हैं—
गाथा -- वंभ सुभावो वादा, त्याज थंभोम जोय पय हारी। किय्या बंगाचारी, भत्तो कित्तेय वंभ कुल होई ॥ १४१ ॥ थाका अर्थ - भसुभावो आदा कहिये, आत्मा का स्वभाव हो ब्रह्म है । त्याज वंभोय जोय पय हारी कहिये, त्याग ब्रह्म सो याके निज-स्त्री का त्याग किय्या वैमाचारो कहिये, आचार व्रत का धारी, सो क्रिया ब्रह्म है। भत्तो कित्तेय वंभ कुल होई कहिये, भरत करि किये, सो कुल ब्रह्म हैं। भावार्थ- स्वभाव ब्रह्म, त्याग ब्रह्म, क्रिया ब्रह्म और कुल ब्रह्मये च्यारि हैं। इनका विशेष अर्थ -तहां स्वभाव ब्रह्म तो आत्मा का नाम है,
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