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होय, ताके घातका बड़ा-बड़ा पाप है। पशु ते पापाचारो चोर, ज्वारी, पर-स्त्री सेवी, इत्यादिक अशुभ कर्मा । मनुष्य के घातका पाप विशेष है सो इन ते मला मनुष्य व्यसनादि दोष रहित होय ताकै घातका पाप विशेष है || ५२४
ऐसे सामान्य मनुष्यनतें, जपी, तपी, संयमी, दानी, दयावान, निर्दोष, इनके विशेष ज्ञान है। सो इनके मारनेका | विशेष पाप है। तातें ऐसा जानना, जो ब्राहारा संयम, जप, तप, व्रतका धारी है। तातें थाकी घातका पाप विशेष | है। विवेकी राजा, ऐसा दीर्घ पाप नहों करै। तातै राजा तें, ब्राह्मण वध रहित है। पूजने योग्य है। मारने योग्य नाहीं। और यह धर्मका माहात्म्य है कि धर्मों को, कोई पाड़े नाहीं। और कदाचित् ब्राह्मण. दया रहित होय । लोभ-क्रोध-मान-मायादि व्यसनका धारी होय तो दीनता पावै। गुरा बिना महत्वता जाती रहै । सामान्य मनुष्यकी नाई राजा करि, दण्ड को प्राप्त होय है, हर कोई पीड़े। दुर्वचन कहै । ब्राह्मएका पद होते. सुमार्गका लोप होय । ऊंच-कुली कुमारगमैं लागै, तो दीनता पावै। अपयश पावै । धर्म-आचार मिटै। सुमार्ग-दया धर्म ते रहित भये, पूज्य पद मिटे। राजा ते अनादर पावै। तातें विवेको उत्तम ब्राह्मण को उत्तम-दान धर्म, संतोष, जप, तप, इन आदि अनेक गुणोंकी रक्षा करनी, बस-स्थावर सर्व जीवनका भला चाहना, यह उत्तम गुण है। सर्वक भलेमें अपना भला है। तातें ब्राह्मण कं धर्म-रत्ता करनी। याका नाम सातवा अवध्य गुण है।७। धर्म विर्षे स्थिरी-भूत है आत्मा जाका, ऐसा ब्राहणः सर्व करि अदंड है । काहू से दण्डने योग्य नाहीं। कोई धर्म-बुद्धि कू, धर्म-सेवनमें दोष लाग्या होय । तौ ताको शुद्ध करने कू यह धर्मात्मा ब्राह्मण ताकू दरड देय, शुद्ध करे। परन्तु, आप दण्ड-योग्य नाहीं। आप अपनी शांत-दशा दया-भाव सहित, शास्त्रनका अभ्यास करें। ताके अर्थ प्रगट करि, आप धर्मात्मा भया और धर्मो-जीवन कू उपदेश देय, सुमार्ग लगावै। जे धर्मात्मा होय । सो धर्मो-जीवका दिया उपदेश, तथा अतिचार लाग्या ताका प्रायश्चित्त, अङ्गीकार करें। तातें धर्मात्मा-पुरुष, राजा करि दण्डने
योग्य नाहीं। कदाचित् ऐसे धर्मी-जीवमें, कोई कर्म-योग ते दोष पड़ गया होय । तौ धर्मात्मा-राजा. यथा योग्य | दण्ड देय, फेरि ताक धर्म-विर्षे दृढ करें। ऐसा दण्ड नहीं देय, जाते याकौ धर्म तें अरुचि होय। धर्म सेवनमैं
आकुलता बधै। घर-धन नहीं लटे। तन-घात नहीं करें। ऐसा दण्ड देय, जाते याको धर्ममें प्रीति उपजै। जिन || धर्मका अतिशय देख, दया-धर्मका सेवन करें। यह धर्मात्मा ब्राह्मरा, सर्व लौकिक दोष ते रहित, उत्तम
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