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बिना, जगत् में निन्दा पावै। दीन कहावै । दीनता के योग ते याचना करें। तब याचकता के योग ते, अपने ॥ । उत्तम-कुल कं कलङ्का लगावै। तातें ऐसा जानना, जो सर्व सत्र की दाता, अनेक गुण मण्डित, एक विद्या || ५२२
है। ऐसी विद्या का अध्ययन, बाल्यावस्था विर्षे हो करना । बालावस्था गये, जिहा कठिन होय है। कषाय-अंश विशेष होय । तिस दोष से विद्या-दाता का विनय नहीं सधै । बाल्यावस्था मन्द-कषाय सहित होय है । ताते बालपने में हो विद्या का अभ्यास करना । ता विद्या करि, पाप तजि पुण्य ग्रहण करे, सो परोपकारी होय है। अपना-पराया मला करें। याका नाम-बाल-विद्या अधिकार है। और दूसरे ब्राहाण कुल का उत्तम है। सर्व विर्षे बड़ा है। ब्राह्मण का बाचार भी सर्व ते उज्ज्वल, दया सहित, उत्तम है। अरु एक दिन में एक बार, एक स्थान बैठा, भोजन कर है सो भी जहां अन्धकार नहीं होय उद्योतकारी स्थान होय, तहाँ भोजन करै अरु अन्धकार गृह में भोजन करें, तो रात्रि-भोजन दोष पावै । तातें रात्रि रहित, अन्धकार रहित उत्तम स्थान में, निर्दोष आहार करै। इन आदिक अनेक शुभाचार होय अरु कदाचित् ऐसा उत्तम जाचार नहीं होय, तो क्रिया-भ्रष्ट भया। कन्द-मूलादि समय भोजन, रात्रि भोजन, अनगाल्या पानी खान-पान करि दया सहित कुभावना सहित होय । सो उत्कृष्ट कुलाचार ते भ्रष्ट होय । तात उत्तम आचार सहित ब्राहासक, ये कार्य तजना चाहिये। थाका नाम--कुलाविधि नाम अधिकार है।21 सर्व कुलन ते ब्राह्मण कुल को अधिकता है। तो याका उत्कृष्ट चलन ही चाहिये । महादयावान्, पर-जीवन की रक्षा रूप भाव होय अरु निर्दयी होय तौ शिकारी समान हिंसा करि, पापाचारी होयक, निन्दा पावै । ताते शुभाचारी सर्व झूठ का त्यागी होय, जो मूह भाषे, तो ब्रह्म को मर्यादा जाय 1 तातें ब्राहारा सत्यवादी चाहिये। सर्व-चोरी का त्यागी होय। जो चोरी करे, तो राज्य-पञ्च-दण्ड पावै । अपयश होय । तात् ब्राह्मण चोर कला-दोषत रहित चाहिये । पर-स्त्री का त्यागी होय । जो पर-स्त्री लम्पटी होय तो राजा ताका शिर, नाक, कान, पाव, हस्त छेदन करें। पश्च, जातित निकासे।तो ऊँच कुलकं दोष लागे। तातै ब्राहाण शीलवान चाहिये। ब्राह्मण सर्व बारम्भ बहुत परिग्रह का त्यागी होय निर्लोभी होय इत्यादिक गुणवान् होय, तो शोभा पावै। अनाचारी भया, महापारम्भ करे। महालोभी होय, दया रहित-सा दी तो उत्तम कुलकौं दोष लगावै। तातें ब्राहारा बहुत बाराभव
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