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बावड़ी का जल नहीं भरै । कच्चे जल तें स्नान नहीं करें। वनस्पती कूं छोले नाहीं, काटै नाहीं । भोगी जीवन के भोगवे योग्य, ऐसी फूल-मालादि तथा महासुगन्धित अनेक जाति के फूल, सो ये व्रती अपने हाथ तैं छोवें नाहीं. पहिरे नाहीं, सूंघे नाहीं । अनेक जाति का सचित्त मेवा दाख, अनार, केला, आमफल, जामुन, नारङ्गी, जम्भोरी, मी, रोष, सीताफल, र, डिही. कमरस, खिसी, राजूर, आंडू, मौलशिरी, तेन्दू, पीलू, अखरोट, अंगूर इत्यादिक भोगी जीवन के भोग योग्य, सचित्त वस्तु का त्यागी नहीं खाय, नहीं छोवें, नहीं तोड़े और ककड़ी, खरबूजा, तरबूजा इत्यादिक नहीं खाय जनेक व्यञ्जन, अयोग्य वस्तु, तरकारी जाति, पत्ता, फल-फूल, बौंड़ी जड़ जाति, कन्द जाति, बक्कल जाति, कौंपल जाति, औषध जाति, चमत्कार गुणकों लिये प्रत्यक्ष रोग नाशनहारी इत्यादिक हरी वनस्पति-ये सर्व विषयो जोवन के भौग्ध योग्य वस्तु, सो सचित्त त्यागी धर्मात्मा श्रावक नहीं स्वाय है। ऐसे अनेक भली वस्तु भोगियों को वल्लभ, जिनके भोगवे कूं. भोगी अनेक कष्ट पाय, तिनके निमित्त मन-वचनकाय अरु धनलगाय, तिनके मिलाप कूं अनेक उपाय करि, भोगवें हैं । तिन भोगन तैं बड़े-बड़े सुभट सुख मानें हैं। ऐसी वस्तु कुं सचित्त का त्यागी, धर्मात्मा श्रावक, तन-भोगन तैं उदासी, प्रात्मिक सुख का भोगी, ये चित्त वस्तु कूं नहीं खाय है। इस सचित त्यागो कूं जगत्-भोग, इन्द्रिय जनित सुख, वल्लभ नाहीं लागें । यह श्रावक, घर में हो यति सरीखे भाव धरै है । विरक्त भावना सहित, काल-क्षेपण करै सो पश्चम प्रतिमा का धारी, सचित्त त्यागी है। ५। आगे घट्टी प्रतिमा का स्वरूप कहिये है। इस प्रतिमा का धारी, रात्रि भुक्ति त्यागी धर्मात्मा, दिन के कुशील सेवन नहीं करें। रात्रि का भोजन त्याग, यहां भया है । तातें रात्रि भुक्ति त्यागी कहिये हैं। यहां प्रश्न - जो रात्रि भोजन का त्याग यहां किया, सो नीचली प्रतिमावाले, रात्रि में खावते होयगे ? अरु दिन का कुशील यहाँ तज्या, सो नीचली प्रतिमा में, दिन कूं कुशील सेवते होंगे ? ताका समाधान - हे भाई! तेरा प्रश्न भला है । परन्तु तूं चित्त देय सुनि । अब भी जगत् में ऐसो प्रवृत्ति देखिये है जो होन - ज्ञानी अरु हीन - पुण्थी, भोले हैं। ते कहैं तो बहुत मुख तैं वाचाल किया तो विशेष करें। अरु तिनतै बनें कछु भी नाहीं । सो तो असत्यभाषी हैं, पाखण्डी हैं। पर का उगनेहारा अपने यश का लोभी, बाल-बुद्धि है । महाज्ञानी परिडत हैं, दीर्घ पुरायी हैं, सज्जन स्वभावी हैं। सो कार्य तो बड़ा महत् करें अरु अपने मुख तैं
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