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परिणति होय जाय, माया रूप भाव हॉय, सो होलित दोष है । २० । सामायिक करते ऊँचा होय, त्रिवली भङ्ग करै तथा ललाट पर त्रिबली करें, सो त्रिबलित दोष है । २१ । जहां सामायिक करते, सिरकूं हस्त तैं छोय करि, कायको संकोच कर, गठिया समान होय करै, सो संकुचित दोष है । २२ । गुरु के देखते तथा अन्य कोई के देखते सामायिक करै, तब तो महाविनय सहित खड़ा हो करै । काय को शुद्ध भली क्रिया सहित सामायिक करै अरु कोई नहीं देखता होय, तौ प्रमाद सहित स्वेच्छाचारी होय करें। चहुँ दिशा अवलोकन रूप कायचंचल राइ भोति सामायिक. तो दोष है सामायिक करते अपने गुरु अपच्छिन्न होय तथा संघ में और वृद्ध मुनि, बड़े-बड़े गुरुजन तैं दृष्टि चुराय, अपने तन की शोभा निरखें, सो काय रूप देख राजी होघ मन-तन चलित- चंचल राखँ, सो अदृष्टि दोष है । २४ । जहां व्यारि संघ तथा अन्य जन राजी करवेकौं सामायिक करें, सो करमोचन दोष है । २५॥ तहां सामायिक करते आपकूं पोछी आदि पदार्थ को प्राप्ति वांच्छे जो मेरे पास पोछी शास्त्रादि उपकरण नाहीं, सो मिलें तो भला है। ऐसी जानि सामायिक करै सो लब्धि दोष है । २६ / श्रावक के षट कर्म रूप उपकरणन की प्राप्ति जार्ने, तो सामायिक करै, सो आलब्धि दोष है । २७ । जहाँ काल की मर्यादा टालि, सामायिक करै अरु ग्रन्थ के अर्थ विचार रहित भाव राखै, सो होन दोष है । २८ तहां शीघ्र - शीघ्र क्रिया करि, अल्पकाल में सामायिक पूर्ण करें तथा धीरे-धीरे प्रमाद सहित क्रिया करि, बहुत काल पूरै अरु पाठ पढ़ें, सो भूलि-भूलि जाय, फेरि पढ़ें। फेरि पढ़ें, सो फेरि भूलें। ऐसी सामायिक करै, सो उद्धव दो चूलि दोष है । २६ । जहां सामायिक करते, मूके की नई हूं-हूं शब्द बोलै और अंगुली- नेत्रादि तैं संज्ञा बतायें, सो मूक दोष है । ३० तहां सामायिक करते शोर करि पाठ पढ़ें। जैसे मैंड़क शोर करें, तैसे पाठ करते शब्द बोलें, सो बहुत शोर करै सो ददुर दोष है। ३२ । सामायिक करते एकासन तैं हो, एक क्षेत्र तिष्ठता, सर्व देव गुरु की स्तुति करते नमस्कार करे अरु पाठ पढ़, सो महामिष्ट स्वरतै, राग सहित, पर का मन रायवहारा स्वर तैं पढ़ें, सो चूलित दोष है। ३२ । ऐसे कहे बत्तोस दोष, तिनको टालि सामायिक करै, सो शुद्ध सामायिक धारी श्रावक है । इति बत्तीस दोष। आगे बाईस दोष, सामायिक करते कायोत्सर्ग करें तब टालै सो कहिये हैं। तहां प्रथम नाम घोटक, लता, स्थम्भ, कूट्या, माला, वधू, लम्बोतर, तन दृष्टि, वायस, खलिन, जुग, कपित्थ,
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