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साता उपजाय, लौकिक मोह छुड़ाय, घोछे यह भव्यात्मा च्यारि प्रकार आहार तजन करता भया। सो इन | आहारन के नाम तहाँ जाके खाये पेट भरे, सो खाद्य आहार है।३। जे लौंग, सुपारी आदि स्वाद के निमित खाईये, सो स्वाद आहार है। २। तहाँ जाकौं अंगुली से चांटिये, सो लेह्य आहार है।३। तहां जाकौं पानी की नाई पोजिये, सो पेय आहार है। ४। ऐसे खाद्य, स्वाद्य, लेह्य, पेय-इन च्यारि प्रकार आहार की तजन करि, डाम के विस्तर को निर्जीव भूमि शोधि, तापै बिछावै। तावै तिष्ठ करि, साधर्मी जन तैं चर्चा करता, तत्त्व विचार करता, द्वादशानुप्रेक्षा विचारता। वीतराग देव का स्मरण, वीतराग गुरु, दया-धर्म इत्यादिक पञ्चपरमेष्ठी के गुरान का चिन्तन इत्यादिक धर्म-ध्यान भावना सहित, काय ते भिन्न होय । इस भांति सन्यासी काय तजके, महाऋद्धि धारो कल्पवासी देव होय है। ऐसे सल्लेखना व्रत जानना । याही व्रत के पञ्च अतिचार हैं । जीवित संशय, मरण संशय, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदान । इनका अर्थ-तहां संन्यास लिये पीछे रोसा विचारना, जो में बहुत जाऊ नाही, तो मला है। ऐसा विचारै, सो जीवित संशय अतिचार है। जहां संन्यास लिये पीछे ऐसा विचार करना, जो मैं मरूँगा अक नाही? अब पर्याय रही भली नाहीं। ऐसी भावना का नाम मरण संशय है । २ । संन्यास लिये पीछे ऐसा विचारना, जो फलाना हमारा बाल-मित्र है। तात मिलाप होय तो भला है। ऐसे विचार का नाम मित्रानुराग अतिचार है।३। तथा अगले भोगे भोगन क यादि करै, सो याका नाम सखानुबन्ध अतिचार है।४। संन्यास लिये पीछे ऐसा विचारै, जो इस व्रत भोकौं रौसा भला फल उपजियो, सो याका नाम निदान-बन्ध अतिचार है । ५। ऐसे ये पांच अतिचार नहीं लागैं, सो शुद्ध सल्लेखना व्रत है । या प्रकार शरीरकों व्रत सहित तजिये । शरीर तजे के तीन भेद हैं—च्युत, च्यावक और त्यक्त। इनका अर्थ-तहां कदलो घात बिना, संन्यास बिना, अपनी सम्पूर्ण आयु-सर्व-भोग, उदय-मरण करै, सो जो शरीर आत्मा नै तज्या, सो च्युत शरीर है ।। अब कदली घात का स्वरूप कहिये है। विष से मरै, शस्त्र तें, जल ते, अग्नि तें, पर्वतादिक तें गिरि मरै। रोग को तीव्र वेदना ते इत्यादिक काररान तें. मरै सो कदली घात मरण है । सो इस कदलो घात सहित, संन्यास रहित जा शरीरका आत्मा ने तज्या, सो च्यावक शरीर है। २। तीसरे त्यक्त के तीन भेद है। याको आत्मा चाह करि, अपनी इच्छा