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तजि ऊपर ऊपर क्रीड़ा करें। तथा हाथ-पांव अङ्गन तैं क्रिया करि वीर्यका गिराना । इत्यादिक ये अनंग क्रीड़ा दोष है । ४ । और जहां, जिस भोजन तैं, तथा जिन वचनन तैं तथा जिस क्रिया तैं तीव्र कामकी बधवारी होय ---- सो काम तीव्राभिनिवेश दोष है |५| ऐसे ये पांच अतिचार रहित होय, सो ब्रह्मचर्थ्यासुव्रत है । इति ब्रह्मव्रत ॥४॥ आगे परिग्रह परिमाणासुव्रत कहिये है-तहां दस प्रकार परिग्रह तिनका प्रमाण करें। सो तिन दसके नाम क्षेत्र वास्तु, धन, धान्य, चौपद, दोषद, आसन, शयन, कुप्य, और भाण्ड ये दस भेद परिग्रह के हैं । सो तहाँ चौतरफ क्षेत्रका प्रमाण करना। जो येते क्षेत्रनमें कर्म सम्बन्धी क्रिया करनी । यातें अधिक क्षेत्रनमें कर्म सम्बन्धी कार्य करने का त्याग सो क्षेत्र परिमाण है। तथा एते क्षेत्र विषै हल जोति खेती करना अधिक क्षेत्र नहीं जोतना । ऐसा परिमाण करना सो क्षेत्र परिग्रह परिमाण है । २ । और जहाँ दुकान, मन्दिर, नगरका परिमाण मन्दिर राखे । सो वास्तु परिग्रह परिमारा है । २ । स्वर्ण चांदी, रत्न इत्यादिकका प्रमाण करना, जो यता धन राखना सोधन परिग्रहका परिमाण है । ३ । और तहां दुल, गेहूं, अधू, रोठ, मूंग, उड़द, चना, कोदों, बटरा, मसूर, तूअर इत्यादिक अन्नकी संख्याका परिमाण जी ऐते अन्न राखे, सो एतै तौल प्रमारा सो धान्य परिग्रहका परिमाण है। 8 और दासी दास सेवक, दो पदके धारी जीव एते राखना, सो दुपद परिग्रहका परिमाण है । ५ । और हस्तो, घोटक, ऊंट, गाय, भैंस, बकरी, रा चौपद हैं। सो इनका परिमागा करना, जो रातै चौपद अपने आधीन राखूंगा । सो चौपद परिग्रह परिमाण है । ६ । और रथ, गाड़ी, गाड़ा, सिंहासन, पालको, म्याना, इत्यादिक आसन हैं । सो इनका परिमाण राखना । सो आसन परिग्रह परिमाण है । ७। और पलंग, खाट, बिछौना, तकिया इनका परिमाण कर लेना । सो शयन परिग्रह परिमारा है। ८ । और सूत रेशम घास, रोम इत्यादिकके कोमल कठोर वस्त्र तिनका प्रमाण । सो कुप्य नाम परिग्रह परिमारा है तथा केशर, कपूर, अगर, चन्दन, इतर इनकी खुसका परिमारा राती खुसबू राखो सो याका नाम कुप्य परिग्रह परिमाण है । ६ । धातु पात्रके बासन चांदी, स्वर्ण, कांसा, पीतल, तांबा, लोहा, जस्ता, सीसा, रांगा इत्यादि पृथ्वी काय धातु पात्रका परिमाण राखना। जो राते थाल, रकेबी, चरुवा, बैला, भरत्याईं सर्वकी गिनतो तौलका परिमाण राखना। सो भाण्ड नाम परिग्रह परिमाण है । २० । इन दस जाति परिग्रहके
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