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है ।। ऐसे पाच अतिचार नहीं लगावै। सो अद्ध तत महिसागतत है। इति अहिंसाणुव्रत ।। आगे सत्याणुव्रतका अतिचार सहित स्वरुप कहिये है। तहां ऐसी स्थल भूठ नहीं बोले, जातें लोक निन्दा होय, दुसरोंको बुरा लागे। कोई दगाबाजी सहित वचन, कठोर वचन, मर्म छेदन वचन, परदोष प्रगट करन वचन, कलहकारी वचन, द्रोह वचन, गाली वचन, पापबंधकारोवचन, परघर धन मन तन हरन वचन, परनिन्दा वचन, क्रोध वचन, लोभ वचन, रागद्वेष वचन, अविचार वचन इत्यादिक असत्य वचनके भेद हैं। इन सर्वकात्यागना, सो सत्याणुव्रत है । सो याके भो पांच अतिचार हैं। सो दिखाईये हैं। प्रथम नाम मिथ्या उपदेश, रहोव्याख्यान, कूटलेख क्रिया, न्यासापहार, और साकार मंत्र मैद। इनका अर्थ-तहाँ भूठा उपदेश देना झूठा मार्ग बतावना तथा बालकनते असत्य भाषण करि, क्रीड़ा करनी। इत्यादिक असत्य वचन बोलना सो मिध्योपदेश है। ।। और जहां पराई राकांतकी बात कोई बतलावते होंय, ताकी कोई अनुमान नै जानि, अन्य लोकन में प्रकाश करै। सो रहोव्याख्यान अतिचार है। २। और जहां मुठा खत, हुण्डी, चिट्ठी लिखना। झूठा लेखा माड़ना। इत्यादिक ये कूट-लेख क्रिया दोष है।३। और पराये गहने आदि धरै माल को राखि, जानि-बमि मुकरि (मेंट)जाना, सत्यघोष पुरोहितको नाई। सोन्यासापहार नाम अतिचार है।४। और कोईके शरीरके चिन्हतै, नेत्रके चिन्हते, मुखके चिन्हते. ताकी अक्रिया देख, ताके मर्मकी बातकों जानि, पीछे द्वेषभाव करि, पराई छिपी बात कू सबमें प्रगट करना। सो साकार-मंत्र भेद दोष है। ऐसे पांच अतिचार रहित होय, सो सत्याएव्रत कहिये ।२आगे अचौर्याणवतका स्वरूप कहिये है। तहाँ पराया धन बिना दिया लेय, सो अदत्तादान है। ये चोरो जानना । जो पराये पुत्र, स्त्री, दासी, दास, हस्ती, घोटक, गाय, बैल, बकरी इत्यादिक चेतन वस्तु । अरु, रत्न, स्वर्ण, चांदी, वस्त्र, अन्न, धन ये अजीव वस्तु । ऐसे इन चेतन-अचेतन द्रव्य कौं चोरना, सो चोरी है। सो या चोरीके पांच अतिचार हैं। सो कहिये हैं। प्रथम नाम-स्तैय प्रयोग, स्तेय वस्तु आदान, राज्य-विरुद्ध किया, मानोन्मान, पर-रूपक व्यवहार। ये पांचा अतिचार हैं। इनका अर्थ-तहां चोरोका उपदेश देना, चोरकं राह बतावना, पराया घर-मन्दिर फोड़वे
क कुसिया, कुदारी देय, चोरीका मंसूबा बतावना। इत्यादिक चोरीके प्रयोग बतावना, सो स्तेय प्रयोग नाम ।।दोष है। 21 और चोरीको वस्तुक सस्ती जानि, बड़ा नफा देख, मोल लेना। सोयाका नाम तदाहता दान दोष