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अनर्थदण्ड है तथा चोरी करने का मंसूबा करना। चोरन की चतराई की प्रशंसा करनी। चोरो का उपदेश | देना। कुशील-सेवन की कथा करनी। कुशील-सेवन के कारण धातु आदि कामोद्दीपन प्रोषध को कथा करनी ये सब अनर्थदण्ड है। वेश्या-कञ्चनी के रूप की कथा। तिनके नाच, गान, नृत्य इनकी कथा सो अनर्थदण्ड है तथा जात परिग्रह वध, ताका उपदेश देना। मोह वध, क्रोध वधै, मान-माया-लोभ वध, मत्सर वधै इत्यादिक दोष वर्धे, ऐसा उपदेश देना तथा भमि खोदने का उपदेश देना। बहूत अग्नि जलावने का उपदेश तथा पराये घर-नगर-वन में अग्नि लगायने का उपदेश देना। ये अनर्थदण्ड है। भूमि-खुदाय स्खेती करने का उपदेश देना तथा नदी, तालाब, बावड़ी, कूप का जल बहावने, फोड़ने का उपदेश देना। वस्त्र धुलवाने का उपदेश। कूप, तालाब, बावड़ी, महल, मन्दिर, बनवाने का उपदेश देना। परस्पर औरन के युद्ध करायवे का उपदेश । ये सर्व अनर्थदण्ड हैं तथा नदी, तालाब, बावड़ी में कूदने-सपरने का उपदेश तथा बहुत वृक्ष, वनस्पति छेदने का उपदेश। वन कटायने का उपदेश, बाग कटायने का उपदेश, घास कटायने का उपदेश । अन्न, तिल, शहद, सन, हाड़ का संग्रह-भण्डशाल करने का उपदेश । ये सर्व अनर्थदण्ड है तथा धर्म-घात का उपदेश देना। जो हे भाई! धर्म तौ तब याद प्रावै, जब पेट-भर रोटी मिले। तातें बड़ा धर्म ये ही है। जासे दोय पैसा पैदा होंय, सो करौ। धर्म-सेवन में कहा खावोगै? ऐसा धर्म-घातक उपदेश, सो अनर्थदण्ड है तथा कोई तीर्थ यात्रा कों जाता होय । ताकौं रोसा उपदेश देना जो है भाई! अभी तो कमाई के दिन हैं। तोकों दोय-च्यारि महीना परदेश में लगें। पांच-पचास रुपया खर्च पड़ें। रोसे तीर्थ में कहा पाय है? तातें घर ही तीर्थ है। तेरे भाव अच्छे राख । इत्यादिक उपदेश देना। सो अनर्थदण्ड है तथा त सब दिन धर्म-सेवन, पढ़ना-सीखना, जप, तप इत्यादिक धर्म विर्ष लगाद है, घर का सोच नाहीं । सो खायगा कहा ? आगे घर का काम कैसे चलेगा? तात कमाई में लागो। इत्यादिक धर्म-घातक उपदेश देना, सो अनर्थदण्ड है। सो याका नाम पापीपदेश है।। और हिंसा का उपदेश देय, हिंसा के उपकरण करावना। वक्की, ऊसली, मूसली घुरो, कटारी, बी तलवार तुबक, कुल्हाड़ी, कुदारी, कुसिया, हंसिया-इन आदि को बनवायकर, मांगे देना इत्यादिक पाप कार्य करना, कराकना, अनुमोदना । सो हिंसा दान नाम, अनर्थदण्ड है। २। और जहाँ खोटे पापकारी व्यापार का उपदेश देना। आप दीर्घ हिंसा
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