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नाम वांच्या सहित अतिथि है। अस वाच्छा है, सो याचना कराव है। रोसो याचना का धारी, वांच्छा सहित रंक,
ताको असहाय जानि, दया भाव करि दानका देना। सो करुणा सहित अतिथि का दान है। और वीतरागी, सु-तपसी, ज्ञानी, ध्यानी, यमी, दमी, शान्ति रसका भोगो नन दिगम्बर, याचना रहित, जगत् पिता, सर्वका गुरु,
त्रिलाक पूज्य, सब जावका पोड़ा-हर, दया सागर, षट्कायिक जीवनकू अभय-दान का दाता, योगीवर, मोक्षाभिलाषी, परोषह सहने कंसाहसी, तन-ममत्व रहित, इत्यादिक कहे गुण सहित जे मुनीश्वर, सो उत्तम पात्र हैं। सो इन पात्रन कू महा भक्ति-भाव सहित, नवधा भक्ति करि दान देनेहारा दाता. ताके सात गुण हैं। सो हो कहिये हैगाथा-सध्धा भत्ति सत्तह, विणाण मलुब्ध होय वम भावो । जम्मं गुण सुह तज्यो, इव सत्तय गुण जय आदाए ॥ १३॥
अर्थ-सध्धा कहिये, श्रद्धा। भत्ति कहिये, भक्ति सत्तय कहिये शक्ति। विशारा कहिये विज्ञान । अलुब्ध कहिये, अलुब्धता। होय चम भावो कहिये, क्षमा भाव होय । जम्म गुण सुह तज्यो कहिये, अंतका शुभ-गुस, त्याग है। इव सत्तय गुण कहिये, ये सात गुण । ज्ञेय आदार कहिये. दाताके हैं। भावार्थ-श्रद्धा, भक्ति, शक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा और त्याग--ये सात हैं। जहां दाताके रोसा श्रद्धान होय । जो परलोक है। च्यारि गति है। पाप-फल तैं नरक-पशु होय है। पुण्य-फल ते सुर-नरके सुख होय हैं । अरु मुनि का दान, स्वर्ग-मोक्षका दाता है। जिनका संसार रह्या होय. तिनके घर यतीश्वरका दान होय है। ऐसो श्रद्धाका अस्तित्व सहित दान देना सो श्रद्धा गुरा है।। और जो मुनिराज, भोजनकों अपने घरमें आये। तिनके गुण सूं प्रीति-भाव करना। सो भक्ति गुण है। २। और जगतके गुरुकौं, प्रमाद रहित विनय सहित, भोजन देव की शक्ति होना सो शक्ति गुण है।३। और मुनिराजके भोजन वि प्रवीणता। सो यथा-योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव जानि, भोजन देय।। विवेकी-दाता ऐसा विचारै। जो ये मुनि वृद्ध हैं, तो इनके योग्य पुष्टता रहित भोजन देय । अरु गरिष्ठ देय तौ वृद्ध-मुनि कौं खेद करै। तातै वृद्धकी वय ( उमर )प्रमाण देय । तथा मुनिराज तरुण हैं तो ता माफिक देय । तथा ये मुनि, रोग सहित हैं। सो फलाना सेंग है । वैसी ही दवा सहित, भोजन देय । तथा इन यतिका तन, वायु सहित है। तथा पित्त सहित है। तथा कफ सहित है। इत्यादिक तौ द्रव्यको विद्यार। और ऐसा जाने, जो यह