Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 511
________________ 44 जगत्गुरुकी पूजा करनी सो अर्चन भक्ति है।४। और पीछे विनय सहित नमस्कार करना सो प्रणाम भक्ति है।५। और मन को, भक्ति सहित, विनय रूप करि, मुनीश्वर में मन लगावना। उत्साह सहित, प्रमाद रहित विकल्प तजि, एकाग्र होय मुनिके दानमें मन राखना सोपा हुद्धि भनि ।६। और पान गुनीशाके भोला । समय, घर-जन तें वचन बोलना-कोई कारण पायके सलाह करनी होय तौ परम्पराय विचार के बोले सो वचन । शुद्धि है । ७ । और मुनि को भोजन देते समय दाता अपनी काय कौं शुद्ध राखै। और क्रियान ते छुड़ाय, भोजन देनेमें एकाग्न करि शुद्ध राखना सो काय शुद्धि भक्ति है।९। और शुद्ध भोजन, अधः-कर्म रहित सो शुद्ध भोजन है। सो अधः-कर्म कहा ? सो कहिये है । अधः-कर्म चार प्रकार है-आरम्भ, उपद्रव्य, विद्रावण और परतापन । इनका अर्थ-जो प्राणीके प्राण घाततै निपजें। सो पारम्भ दोष है।। और अन्यजीवनकौं मनवचन काय विर्षे दुखी करि भोजन बनावना। सो उपद्रव्य दोष है। 21 और अन्यजीवनके बङ्गोपाङ्ग छेदन करि भोजन निपज्या होय। सो विद्रावरा दोष है।३। पर-जीवन को सन्ताप-क्लेश उपजाय, भोजन निपज्या होय सो परतापन दोष है 18। इन च्यारि दोषों सहित भोजन देय सो अधः-कर्म दोष है ऐसे च्यारि भेद अधः-कर्म रहित भोजन देना सो राषरणा शुद्धि भक्ति है।६। ये नवधा भक्ति कहीं सो दाताके सात गुण, नवधा भक्ति इन गुरा सहित मुनीश्वर को भोजन देना सो पात्र दान है सो श्रावकके घरमैं,जो श्रावकने अपने निमित्त किया होय, तामें तें भोजन देना सो अतिथि संविभाग व्रत है । सो यति अतिथि हैं, वे भक्ति सहित, दान देने योग्य हैं। भक्ति सहित पावन कौं दान दिये, महत-फलका लाभ होय है सो इन पानन कुं अन्नदान, ओषधिदान, शास्त्रदान, और अभयदान दीजिये। यहां प्रश्न-जो तुमने मुनि कौं च्यारि ही दान देने योग्य कहे। सो अभयदान कैसे सम्भवे ? अभय-दान तौ दया मयी भावन ते दिया जाय है सो दया एकेन्द्रिय, विकलैन्द्रिय, इन आदि दीन-दुखी जीवनकी कीजिये। तिनकों अभयदान सम्भव है। अरु जगत गुरु, त्रिलोक पूज्यको दया कैसे सम्भवै ? ताते इनको अभय-दान कैसे कह्या ? ताका समाधान-जैसे कोई राजाके प्रबल वरो थे सो कोईक छल करि, राजाको अकेला पाय, ताकौ पकड़िक मारनेका उद्यम किया। तब ऐसे समय विर्षे, इस राजाका सेवक-महा योद्धा, आय गया सो वानें अपने नाथ की दुःख जान, वैरीन ते युद्ध किया। अपने पुरुषार्थ हैं।

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