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तराजूत तौलिये ताके सर पंसेरी आदि बांट तथा कुड़पाईं छोटी बड़ी रक्खें। सो लेने के तो बड़े अरु देने के सैर
पंसेरी कुड़ापाई छोटी रीसे राखै सो चोर है। ऐसे ही भली वस्तु विषै बड़े मोल की वस्तु विषै अल्प मोल की ४८५ वस्तु मिलावना, सो चोरी समान है। सो विवेकी ऊँच- कुत्री ऐसी चोरी नहीं करें। जे हीन कुली हैं ते चोरी करें हैं। जैसे - भील मोशा गौंड़ ये मनुष्य चोरी करें हैं तथा धन हारचा ज्वारी चोरी करें तथा जोभ लोलुपी चोरी करै तथा जो खान-पान वस्त्र आभूषण तौ भलै चाहे वरु कुमाय नहीं जाने ऐसा कुप्त पुरुष चोरी करै । वेश्या व्यसनी होंय ते चोरी करें। मांसाहारी चोरी करै तथा पर-स्त्री लम्पटी चोरी करै इत्यादिक कुबुद्धि के धारी जीव चोरी कर अपना पाया भव वृधा कर अपना किया धर्म कौं विना हैं तथा अपने स्वामी का बुरा चाहनेहारा स्वामी द्रोही चोरो करै तथा मित्र तैं कपटाई करनेहारा मित्र द्रोही चोरी करें तथापर के किये उपकार की भूलनेहारा कृती होय सो चोरी करें तथा धर्म भावना रहित पुरुष चोरी करें, इत्यादिक जीव चोरी करें। सो चोरी के अनेक भेद हैं। एक तौ धर्म चोर एक घर चोर । सो जो पापी जीव धर्म स्थान में चोरी करै सो तौ धर्म चोर कहिए और जे माता-पिता, भाई, स्त्री, पुत्र इन तैं धन चुराय राखें सो घर चोर हैं तथा परारा घरन का हरनहारा होय सो घर चोर है। ताकरि राज्य पञ्च का किया दण्ड पावें और बालक पुत्र तथा स्त्री तैं छिपाय खाय भली वस्तु छिपाय कैं खाय सो पुत्र स्त्री चोर हैं। रा सर्व चोर समान दोष करें हैं। ता चोरी के दो भेद हैं। एक चोरी दूसरा चरपट जो छल कर छिप करि पर धन हरै, सो चोर है और गिरासियादि जोरी तैं डराय प्रगट पराया धन हरै, सो चरपट कहिए। सो ए चोरी चरपट भेद भी पाप जानि, तजना योग्य है। ये चोरन को चतुराई, सबही दुःखदाई, ताहि तजना जिन गाई मैं भी धर्म-हित भव्य जीवन कूं सुनाई। तातें तो समझ सब भाई. याके किये हानि दाई, जस हानि गुरु सुनाई। पर-भव दुर्गति होय, सकल पाप धान जीय, ऐसो लक्ष्य तजो सोय, मानो सीख भव्य होय इत्यादिक चोरी सर्व पाप का मुकुट जानि, तजना योग्य है। इस चोरी हो के चिन्तन किये, पाप-बन्ध होय है। तातें अपने पर-भव सुधारवे कूं. सन्तोष भाव भजिकै, बहुत तृष्णा का कारण जो चोरी, ताहि निवारौ। ये सोख सुपूत को है। जो कहे का उपकार मानें और जिनकौं चोरो भलो लागे । सो सुनि करि, भले उपदेश सूं द्वेष-भाव करें। चोरी व्यसन का
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