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सो जीव दुर्गति-गामी पारधी जानना। ऐसे प्राणीनकों तीन लोकमें सुख नाहीं । ये खेटकका व्यसन पाप है। ये पाप भव भव खेटक करै। महा दुख उपजावै । तातें विवेको धर्मात्मा, आप समान सर्व जीवन जान सर्व जीवनकी रक्षा करें सो खेटक व्यसनका त्यागी कहिये । इति खेटक व्यसन । ५ । आगे चोरी व्यसन कहिये है । जे जीव बिना दिया, परका पदार्थ नहीं लेंय सो चोरी व्यसनका त्यागी है। कैसी है चोरी सो कहिये है । एक तो महा दगाबाजीका समूह है। अदत्ता दानको लेय सो चोर है। सो जे चोर हैं सो परधन हरवै
अनेक चतुराई करि पराया घर फोड़ना, पराये खोसेमेंसे धन काढ़ि लेना पराये घरे धनकौं छिपाय के उठाय लावना तथा पराया धन उठाय कहीं घर देना आदि कार्य करें हैं। ये सर्व चोरी व्यसन है। इस चोरी करनहारे का परिणाम महा कठोर निर्दय होय है । पराया धन चारें हैं, सी महा पाप है । संसारमें जीवनकौं ये धन अपने प्राण तें भी प्यारा है। ये जोव अपने दस प्राणकूं धारि सुखी रहें हैं। तैसे ही यह जीव धन तैं सुखी रहे है । तातैं ये धन जीवका ग्यारहवां प्राण है। जो इस धनकौं हरें ते महा पापो जानना । जे पराये धन हरवेक अनेक छल बल करें हैं । कोई तौ पर धन हरवेकों राह चलते जीवनकूं डरवाय धन हरें । कोई जबरी तैं नगर घरन पै धाड़ा मारि करि घर धन लूट ले जांघ । सो तो जोरावरोके चोर हैं। कई दगाबाजी सहित, अनेक भेष बदल, फांसो मारि, धन हरें, ते चोर हैं। कोई पराया धन, लेखा करने में भूलि करि राखेँ। ते चोर हैं। कोई पराया धन घर या हुआ नहीं देंय, जानि वूम मुकर जांथ सो भी चोर हैं। कोई पराया धन कर्ज खाथ रहे, नहीं देय, सो चोर है। ऐसे कहे जो ये सो सर्व चोरन के चिन्ह हैं। और कोई ऐसे हैं जो आप तौ चोरी नहीं करें, परन्तु चीरन क चौरी करने में सहायक, चोरी करावें को, तिनकौं चोरी के उपकरण देंय, मार्ग बतावै सी भी चोर समान हैं। और जे चोरन की पक्ष करि, चोरन को लांच खाय, चोरन क नाकर राख, चोरी कराय धन बांट लेंय । सो भी चोरी समानि फल का धारी है। और चोरन को चोरी पे कर्ज देन, चोरन तैं वाणिज्य व्यापार रखना ये भी चोरी सा हो फल प्रगट करें है । तातें जे विवेकी हैं ते अपने व्रत को निर्दोष राखेँ । सो एती बात नहीं करें जिनका कथन ऊपरि कहि आये। और इस अदत्ता दानके अतिचार हैं सो भी न लगावैं सो ही कहिये हैं। कोई भली चोर कलाका धारी होय तो ताकी अनुमोदना नहीं करें। और
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