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तिनका देष नाहीं। वन का घास-तृण चुगके, अपने तन की रक्षा करें हैं। ऐसे दीन-निर्दोष पशनकों जो शस्त्र मारे, सो महाकठोर चित्त का धारी निर्दयी है। वन के पशु भोले, अज्ञान, असहाय, तिनक्केई पापाचारी छलबल करि मारे,सो बडा पाप-भार बांधे हैं। सोये पाप कब कटेगा के खान रहित.दया रहित नीच-कुली ऐसा कहैं है कि यह हमारा धर्म है। केई कहैं हैं कि यह हमारा किसव (व्यापार) है। सो ऐसे जीव कसाई हैं जे जीव हते ते चाण्डाल हैं। उनके घर में, धर्म का अभाव है जीव-घात करनेहारे प्राणी, खटीक समानि हैं। तिन जीव-घाती जीवन का मुख देखे, पाप लाग है। जे भले कुल के उपजे हैं, ते पर-जीवन को नहीं पाते हैं। जी पर-जीव धातै सो होन-कुलो समझना। पर जीवन के प्राण राखें सो ऊँच-कुली हैं। भोलादिक वनचर हैं, सो वनचर जीवन को मार हैं। उत्तम प्राणी, पर-घात नाहीं करें। जे दयावान हैं, वे ऐसा विचारें कि हाय ! बिना दोष पर-जीव कैसे प्राते हैं ? ये तिलारे दोन, तर लेणी . काह के घर जाय सतावत नाहीं। काहू कवू मांगते नाहीं। काहू का खेत नाहों खून्दते। किसी का फल नहीं खावते। वन के तृण वन-फल, घास, पत्र तो ये खाय हैं । नदी-तलावन का जल पीवते हैं नहीं मिले, तो क्षुधा सहित भले ही पड़ि रहे हैं। नहीं काहू ते लड़ें, नहीं काहू कोप करें । ऐसे दोन पशनकों जे मारे,ते शठ अपना पर-भव बिगाड़े हैं। सर्व जीवन मैं पापी तौ सिंह है । ऐसे पापी सिंहको मारिके अपनी शूरता माने, सो याहू ते पापी हैं और केई वन के सुमरन को मारे हैं
और कहूँ हैं कि हम शूर हैं ते शूर नाहीं पारधी हैं। हिरन, सरगोश, स्थाल इनकों मारे ते श्वान हैं और भवांतर मैं श्वान ही उपजें हैं और चिडिया, कबतर, मोर, तीतर, बाज, मछली, मगर इन बादि पक्षी तथा जलचर जीवन की मार सो सेटकी हैं। ये पर-जीवन के हतनहारे निर्दय परिणामो निश्चय ते नरकादि गति के पात्र जानहु ! ताते जे विवेकी-दयावान जीव-घात नाहों करें उत्तम परिणाम के धारी हैं। ते भव्य येते काम और भी नाही करें। सौ कहिये हैं। जे दयावान होय सो तोर, गोली, गिलोल, कृपाण, बन्दुक, कटार, छुरी, तलवार इत्यादिक शस्त्र नहीं राखें। शस्त्र ते मासँगा, ऐसा वचन नाहों कहैं और फन्दा-फाँसी-पींजरा ये नाहीं बना नाही राखें । बड़ थूहरि आक के दूध तै प बनाय पंखी नाहीं पकड़े । लाठी व लात ते नाही मारें। जाल नाही बनावें नाहीं रात्र नाहीं बैचे । इत्यादिक हिंसाकारी वस्तन का व्यापार नाहीं करें और जे तीर, बन्दुक, तोप,
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