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होना. सौ व्यसन है। ताके सात भेद कहे। इनमें द्यूत, मांस, सुरापान, चोरी और शिकार इन पांच व्यसन का | पाप तौ लोभ कषायतै होय है और वेश्या, परदारा-इन दो व्यसन का पाप काम-कषाय ते होय है । ये व्यसन
कषायन तै होय हैं। सो कषाय बताइये हैं। हे मन्य ! लोम और काम-ये दोऊ कषाय सर्व पापन का बीज जानना। जगत् में जेते पाप हैं ते इन दोई कषायन तें होय हैं। ऐसा समझ लेना। इन लोभ अरु काम के वशि जीव, पिता पुत्रको मारे। पुत्र पिताकों मारे। भाई, माईको मारे। तात सर्व दुःख, संकट और अपयश का मूल ये कषाय हैं। देखो, काम के माहात्म्य तें रावण मरा और लोम ते भरत चक्रवर्ती का मान भङ्ग भया इत्यादि अनेक स्थानन पै लगाय लेना। सो जेते पाप हैं तेते सर्व काम और लोम ते होय हैं। ताते इन काम अरु लोम ते उपजै सातव्यसन सोशमीमसपाका स सा माना। बड़ फल, पीपल फल, उदम्बर फल, कठम्बर फल और पाकर फल-ये तो पञ्च उदम्बर हैं। मद्य, मांस, मदिरा-ये तीन मकार हैं। ये आठ हैं, सो इनके अतिचार सप्तव्यसन मैं गर्भित हैं, सो जान लेना। तिनका आगे कथन करेंगे। अब प्रथम हो द्युत व्यसन के अतिचार कहिये हैं। तहां चौपड़ का खेल है, सो असत्य का मन्दिर कुफर का बोलनेहास, शुत खेल है सतरा है सो ता विर्षे ऐसे पाप वचन, मन का विकल्प रहै है जो राजा मारौं, हाथी मारी, घोड़ा मारौं, ऊँट मारौं, वजीर मारों, पथादा मारौं इत्यादिक मन-वचन-काय करि पंचेन्द्रिय के घात रूप भाव-चेष्टा करनहारा, सतरा जुना है नरद का खेल है, सो दीर्घात का कारण है। गंजका का खेल है सो ता विर्षे राज्य के राज्य हारिये है। महादगाबाजी के या खेल ते कुभावना रहै है; ये भी द्यूत है मूठी जो आप दाव लगाय खेले, सो प्रत्यक्ष निन्दा का कारण द्य त है। परस्पर होड़ लगाय के रमना, सो धूत है। मूठी भर के ऊँना-पूरा मांगना, सो घत है। कौड़ी नम (आकाश) मैं फैक उल्टी-सूधी नारिख, हारि-जीत करना, सो भी धूत है । नव कंकरीन ते चिरभरि (बाघा) खेलना भी छत है। षोड़श कांकरीन तें राजा-रानी खेलना, सो द्युत है। होड़ लगाय मुद्री ते नारियल फोड़ना और हाथ तैं लाठी-लकड़ी तोड़ना, सो भी चु त खेल है और होड़ दिक पाषाणादि भार उठाना, सो मी छत है। भीती उछलना, सो भी द्यूत है। कुंआ, बावड़ी दीवालादि पैद लगाय के कूदना, सौ जुआ है। होड़ लगाय मार्ग चलना-भागना. सो भी द्यूत है। दूसरों को खेलते देखना, सो मी रात समपाप है। धत कार्यन तें व्यापार
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