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को गया चाह है।८। ऐसे आदिनाथ स्वामी के निर्वाण सूचक आठ स्वप्न, आठ पुरुषन को आये। जिन ।।
स्वप्नों का स्मरण-पाठ किये, भव्यन का कल्याण हो है। ये प्रो आदिदेव, पृथ्वी के आदि नायक भये। थो । इनते ही धर्म की मर्यादा चली है । तातें ये भगवान् सर्व जगत् के नायक हैं। सो नायक के तीन भेद हैं। सु। सो ही बताइये हैं। तिनके नाम देशनायक, घरनायक और मननायक । अब इनका अर्थ-जो देशनायक
तौ राजा है। सो देश का राजा धर्मो होय, तौ देश के जीवन क धर्म-राह लगाय, धर्मो करै। देश में जो धर्मो दान, पूजा, शील, संयम, तप के धरनहारे, तिनको रक्षा करै। जे अपने देश में पापी, अन्यायी, चोर, दुराचारी जीव होय, तिनकू दण्ड देय। सो तौ देशनायक धर्मात्मा कहिथे जो देशनायक पापो होय तो पाप। कौं अपने देश में विस्तारै। चोर चुगल अन्याय पथ के चलनेहारे जीव तिनकी रक्षा करें। अरु ता देश में साधु पुरुष भलै मार्ग के चलनेहारे तिनक पीड़ा होय । तातें जैसा देशनायक होय तैसा ही देश में चलन प्रगटै । ये तो देशनायक जानना । १ । जो देशनायक पापी होय पाप बन्ध करै। ताकी तो सो ही जानें। परन्तु देश में घर बहुत होय हैं । सो जा घर विर्षे सर्व कुटुम्ब का रक्षक, जो सर्वकौं अन्न-वस्त्र देय सबकी। रक्षा करें, सो घरनायक कहावै। सो घरनायक धर्मात्मा होय, तौ सर्व घरकौं धर्म रूप चलावै, सबका भला करै । घरनाथक पापी होय तौ ताके घर-जन भी पाप रूप प्रवृत्त । रा घरनायक कह्या।२ घरनायक कदाचित पापी होय तौ होऊ ताका फल वही भोगवेगा। परन्तु मननायक आत्मा है सों जाका आत्मा भली गति का जाननेहारा होय सो अपने मनकौं सदैव धर्म रुप राखै और जाका आत्मा पापी होय, सो अपने मनको मातरौद्र रूप राखै। पाप बन्ध करि पर-भव बिगाड़े है । ३। ऐसे थे नायक के तीन भेद कहे। सो देशनायक, घरनायक तो अपने पुण्य के प्रमाण रहना योग्य हैं और मननायक सदैव है, सो अपने मनकौं सदा-काल धर्म रूप राखना उचित है। इति नायक के तीन भेद। आगे अगुव्रती श्रावक के तीन भेद हैं। पाक्षिक, साधक और
नैष्ठिक । अब इनका विशेष दिखाइये है। जे धर्मात्मा पुरुष राजादिक बड़े बल के धारी धर्म की रक्षा तथा धर्मी ४७१
जीवन की रक्षा के करनहारे, जिनके राज्य में धर्मात्मा जीवनकू कोई पीड़ित नहीं कर सके। महाधर्मात्मा, धर्म के पक्षी इन्हें पाक्षिक श्रावक कहिये। जैसे तीर्थङ्कर, चक्री, अर्द्ध-चक्री, कामदेव, प्रति-चक्री, बलभद्र, महा