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करना, सो छु त-सा पाप है। ज्वारी तें जीत लेना, सो छ त सम पाप है। धू तकार की वस्तु सस्ती देख | लेना। इन आदि क्रियान में छत समान पाप उपज है। ज्वारी को वस्तु गहना राम्सि, बहुत व्याज लैना और
भी जो द्यूत समान याप की करनहारी क्रिया, सो विवेकीन को तजना योग्य है। छु तकारत का संग ही सर्व प्रकार पापकारी है। विष व शस्त्र ते घात भला, सर्य के मुख में हस्त देना भला, परन्तु ध त-संगति भली नाहों। केसी है धूल संगा ? जात प्रतारा जाय, धन जाय, लोक विौं अनादर होय, बड़प्पन नाश होय, अगला किया पुण्य नाश होय। ताते हे भव्य। ये द्य त-संग मला नाहों, तजना ही योग्य है। इस छत के रमने ते लोक, चोरज्वारी कहैं । तातें ये द्य त, सर्वथा अपयश की मर्ति-खानि ही जान, इसका निवारना भला है। ये घत. सर्व पापन का गुरु है। याके फल आत्मा नरक दुःख को पावै, घने कहने करि कहा-तब यहां कोई विवेकी द्यूतकार प्रश्न करता मया। जो द्युत कार्य और तौ हमने भो बुरे जानै, परन्तु चौपड़ कं जुआ मैं कही, सो इसमें कहा पाप है ? ताका समाधन----जो है मव्य! एक तौ चौपड़, झूठ वचनन की खानि है। कुफर-लज्जा रहित वचन यामैं बहुत होंय हैं। मुख ते मार हो मार शब्द निकलें। चित्त दगारूप रहै। चोर समान प्रवृत्त। तातें इन बादिक बड़े पाप या चौपड़ में हैं। तातें तजने योग्य कही है। तब तकार फेरि प्रश्न करता भया जो चौपड़ हमने बुरी जानी। परन्तु सतरों में पाय कहा है ? सो कहो । तामें मौन सहित, वचन रहित, नेत्रन तें देखना हो है। सो पाप कैसे है ? ताका समाधान-जो है भ्राता सतरा विर्षे चौपड़ से विशेष पाप है। सो तें सुनि। या विर्षे परिणति अरु वचन तौ रौद्र-भाव रूप रहैं हैं। रीसे भाव रहैं हैं, जो बादशाह तें वजीर जीतौं। हस्ती तें, घोटक मारौं इत्यादिक पंचेन्द्रिय घातक भाव रहैं हैं तिनही के मारने का विकल्प रहै है सो ऐसे भावन मैं तो नरक जाय। तातें विवेकीन को सतरजतजना ही योग्य है । तब फेरि भी तकार नै प्रश्न किया। जो सतरज पापकारी है, सौ
हमें मासी। परन्तु गंजफा में कहा पाप? सो कहो । ताका समाधान-जो हे भाई! तू विचार। जो कोई दोय ४७४
कौडोहारे, तो लोक कहैं, यह बड़ा ज्वारी है। वाकों मी चिन्ता होय, जो मैं हारया हों। ताके भी योग तें
जगत् में अपयश पावै तो हे भाई! जो गंजफा के खेल में राज्य के राज्य हार, ताकी चिन्ता अरु पाप को कहा । कहानी? जहाँ अशर्फी हारचा, रुपया हारचा, तरवार हारचा, बगीचे हारथा, स्त्री हार-चा, गुलाम हारचा.