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मोती और एक मशि पोई गयी होय तथा पांच-पांच मोती और एक मरिण ऐसे पोई गई होय, सो इनका नाम अपवृत्त है। यहां मणि के दोय भेद हैं। एक मरिण और दूसरा माणिक्य । तहां जायें छिद्र होय, सूत में पोई जाय, सो तो मणि कहिये और जो छिद्र रहित होय, स्वर्ण में जड़या जाय, सो माणिक है। सो जो लड़ी में एक मोती, एक मणि और एक माणिक्य होय, सो भी अपवृत्तक नाम हार है । ३ । जहां जा लड़ी के सर्व मोती तौ बराबर के होंय अरु मध्य में एक बड़ा मोती होय । ताक सीरख नाम लड़ी का हार कहिये । २ । जामैं मध्य में तीन बड़े और जन्य बराबर के मोती होंय, सो उपसोरख कहिये है । २ । जाके मध्य में पांच बड़े मोती होंय, सो प्रकाडकनामा जिष्टी हार कहिये है । ३ । जाके मध्य का मोती तो बड़ा होय। दो तरफ के मोती क्रम तैं छोटेछोटे हॉय, सो अवघाटक नाम जिष्टी कहिये । ४ । जामैं सर्व मोती समान होंय, सो तरल-प्रबन्ध नाम जिष्ट है। ये पांच जाति की लड़ी हारन में होय हैं। सो तिन हारन के ग्यारह भेद हैं सो ही बताइये हैं । तिनके नाम -अर्ध मानव, मानव, अर्थ गुच्छ, निषत्रमालिका गुच्छ, रम्यकलाप, अर्थ, देवछन्द, हार, विजयछन्द और इन्द्रघन्द-ये ग्यारह प्रकार के हार हैं। सो इनके पहिरने हारैन के पदस्थ कहिये हैं। तहां दश लड़ी का हार, सो तो अर्ध मानव हार है । २ । और बीस लड़ी का हार, सो मानव नाम हार है । २ । चौबीस लड़ी का हार, सो अर्ध गुच्छ हार है । ३ । सत्ताईस लड़ी का हार, सो निषत्रमालिका हार है । ४ । बत्तीस लड़ी का गुच्छ नाम हार है । ५ । चौवन लड़ो का, रम्यकलाप नाम हार है। ६ । चौंसठ लड़ी का अर्ध हार है। ७। इक्यासी लड़ी का, देव छन्द नाम हार है । ८ । एकसौ लड़ी का हार, सो हारनामा हार है । ६ । जो पांच सौ च्यारि लड़ी का होय, सी विजय- छन्द नामा हार है। १० । एक हजार आठ लड़ी का होय, सो इन्द्र- छन्द नामा हार है। १२ । ये ग्यारह भेद कहे। सो इनमें पहिले कहे जो नव भेद, सो इन हारन को महामण्डलेश्वर राजा ताई पदवारे पहिरे हैं। दशां विजय - छन्द हारकौं नारायण प्रतिनारायण पद के धारी पहिरें हैं। जो इन्द्र-छन्द नामा हार है सौ देव, इन्द्र, चक्रो पहरें ये भगवान के निकटवर्ती सेवक हैं, सो ये पहिरें तथा इन देव- इन्द्रन के नाथ तीर्थङ्कर पहिरें । एक हजार आठ लड़ी का हार, देवोपुनीत है। ताहि पहिरें जिन देव ऐसे सोहते भये, मानों सर्व ज्योतिषी देव मिलि के, भगवान की भक्ति करने कौं, निकट हो आये हों। ऐसे भगवान् बहुत काल पर्यन्त राज्य करि, ता
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