________________
श्री
सु
蒙
ि
**
। १३ । पीछे पाताल तैं निकसता धरणेन्द्रका विमान देखा। ताका फल ऐसा जो जन्म तैं हो ताकेँ अवधि-ज्ञान होयगा । १४ । पीछे रत्न राशि देखी ताका फल ऐसा, जो गुणका निधान होयगा । २५। निर्धूम अनि देखि
ताका फल ऐसा, जो अष्ट कर्मनका जारनहारा होयगा ।। २६ । ऐसे भगवानके अवतार होनेके पहिले के सोलह स्वप्नोंका फल जानना ।
इति श्री सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थ के मध्मे में राजानके गुण तथा चौदह विद्या, तीर्थंकरकी माता के सोलह स्वप्न, इत्यादि कथन करनेवाला इकतीसवां पर्व सम्पूर्ण ॥ २१ ॥
आगे भगवान् वृषभदेवने जन्म पीछे तेरासो लाग्त पूर्व राज्य किया। भादोई का पता दशधा भोग भोग सुखी भये । तिनके नाम प्रथम मन वांच्छित रत्न ज्योतिषो दैवनकी प्रभाकौं जोतनेहारे अनेक वरनके तिनके सुख भोग । २ । नव निधिकों आदि लेय, परम सम्पदाके भोग । २। महासती, शचीके रूपक जीतनहारी आज्ञानुसारी, विनय सहित अनेक मन मोहन चेष्टाकी धारनहारी सुन्दर रानीका भोग । ३ अनेक सम्पदा कर भरे नगर देश तिनके राज्यका भोग । ४ । देव विद्याधर भूमि गोचरो राजान सहित अनेक महान् पुरुषन करि वंदनीय हस्ती घोटक पयादे इन षट् प्रकार सेन्याके ईश्वर ताक्रे भोग । ५ महान् सुगंधता सहित. अनेक रत्नमयी कोमल शैय्याके मोग । ६ । रत्नमथो सिंहासन तख्त, बैठनेके स्थान महा उदार, उत्तम मन्दिरनके भोग । ७ । अनेक रत्नमयी स्वर्ण चांदी आदि अनेक मनोहर धातुके अनेक आकार के वासनके भोग । ८८ । नाना प्रकार षट्रस भयो अनेक भोजन- व्यंजन, जिह्ना रंजित वस्तुके खावनेके भोग । ६ । देव देवी, मनुष्य स्त्रीनके गाये बजाये अनेक सुन्दर स्वर सहित संगीत, गान, नृत्यादिक, अनेक राग रंगके भोग । १०1 ऐसे दश प्रकार के भोग, देवाधिदेव वृषभनाथ जिनने राज्यावस्थामें भोगे सो अतिशय पुण्यका फल जानना । इति दश जाति भोग। आगे सहज षट्-गुण पुण्यवान् के परखवेकों बताईये है। एक तो आप, सर्व जगतके देव मनुष्यन करि पूजनीय पदके धारी, सब तैं बड़े हाँथ । अरु अपने बड़प्पनका मान नहीं करें ये महा पुण्यका फल है। हीन पुण्यो, अल्पसा भी लोकमें आदर-सत्कार पावै तौ मान करें। पुण्यवान् बड़ा भी सत्कार पावै, तौ भी मान नहीं करै । २ । होन पुरायो अल्पसा सत्य बोले तो मान करें। कहै, हम जैसा सत्यवादी और नाहीं
૪૭
रा