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नम
भ्रष्ट होय, खोटा आचार आदरेंगे।४। बन्दरको हाथोके कन्धे पे चड्या देखा। ताका फल ऐसा, जो आदि। तँ चला आया जो क्षत्रीनका वंश तिसको व्युच्छित्ति (नाश) होयगी। होन कुलके धारी अकुलीन, पृथ्वी पर राज्य करेंगे।५। वायसनके समूह करि, हंस पीड़ित देखा। ताका फल ऐसा, जो पञ्चम-कालमें जब्बानी मोले । जीव धर्म के अर्थ मुनि धर्म तजिक, अनाचारी-हिंसक जीवनकी सेवा करेंगे। असंयमी कषायी जीवन करि, धर्मात्मा जीव पीड़े जांयगे। पापो जीवन करि, धर्मो जीवनका अपमान होयगा।६। भत नाचते देखे तिनका फल रौसा। जो पञ्चम कालमें अज्ञानी जीव भगवान् जानि धर्मके अर्थ भूतादि व्यन्तर देवनको पूजा करेंगे।७। सरोवर मध्यमें सूखा, तीरमें अगाध जल देखा। ताका फल, ऐसा जो उत्तम तीर्थ-स्थानकनमें धर्मका अभाव रहेगहीन रणनमें धर्म रहेग! वि भुलि करि लिप्त देखी। ताका फल रोसा। जो पश्चमकालमें शुक्लध्यानी नहीं होयगे। धर्मध्यानी केईक रहेंगे।६। जिन पूजाका द्रव्य, श्वान खाते देखा ताका फल ऐसा जो पञ्चमकालमें पात्र को नाई, अव्रतो तथा कुपात्र व अपान ये आदर पावेंगे। २०१ तरुण वृषभ शब्द करते देखा। ताका फल रोसा जानना, जो पञ्चम काल के जीव. तरुण समय में तो धर्म-ध्यानके आदरने विर्षे उद्यम करेंगे। परन्तु वृद्ध भये, धर्ममें शिथिल होय, अरुचि करेंगे। १३ चन्द्रमा के शाखा देखीं ताका फल ऐसा, जो पंचम काल में अवधि, मनःपर्यय ज्ञानके धारी मुनि होंगे। २२। दो वृषम साथही गमन करते देखे ताका फल ऐसा, जो पंचम काल के मुनि, संघ में रहेंगे। राका-विहारी नहीं होयगे। १३। सूर्य मेघ पटल करि आच्छादित देखा। ताका फल रोसा, जो पञ्चम काल के मुनीनकों केवल-ज्ञान नहीं होयगा।२४। सूखा वृक्ष छाया रहित देखा ताका फल रोसा। जो पंचम काल के स्त्री-पुरुष शोल व्रत धारि, पीछे कुशील सेवेंगे।२५। सूखे पत्रन का समूह देखा। ताका फल रोसा, जो अन्न आदि ओषधि हैं तिनका रस जायगा, सर्व ओषधि नीरस होंगी।२६। रोसे भगवान वृषभदेवने कही कि मो चक्रेश्वर! इनके फल अब नाहीं। आगे पंचमकाल के उतारमैं दिखेंगे। इति भरत चक्रवर्ती के स्वप्न-फल समाप्त। आगे पंचम काल में भोले जीव अपनी बुद्धि तें कल्पना करि, अनेक प्रकार भगवान कू स्थाप्य के पूजेंगे, बहुविधि त भगवान के भेद कहेंगे। तातै शुद्ध भगवानके जानने कौं, भगवान के गुरा कहिए हैं। जिनमें ये गुण होय, सो शुद्ध भगवान हैं। जिनमें ये गुण
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