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शस्त्र बांध, नाशादर्तक. दयारादित, लील हा कोला करता. इट जोवन कों दण्ड देता, प्रजापालन करें। । सो शस्त्र सहित आजीविका करली, सो असि वार्ता कहिए । २। मसि कहिए स्याही, तातै धर्म-कर्म के अक्षर यो । लिखने का व्यवहार करना, पाप रहित न्याय सहित लिखने करि, आजीविका पूर्ण करना। सो मसि वार्ता है ।२। । कृषि काहिए, खेतो करना। अपनी बुद्धि के बल करि, धरती विर्षे अनेक प्रकार बीज बोय, बहुत प्रकार अन्न,
मेवा, अनेक रस निपजाय, धन का उपजावना, सो कृषि वाता है । ३। अनेक न्याय सहित वाणिज्य-व्यौयार, हिंसा-पाप रहित व्यापार करना। तामें बहुत आरम्भ, बहु हिंसा, असत्य, चोरी इत्यादिक दोष रहित, मला यश सहित, धन को उपजावने के निमित्त व्यापार करना । सो वाणिज्य वार्ता है। ४। जहां अनेक महल-मन्दिर बनवाने की कला प्रगट करि आजीविका करनी सो शिल्प वार्ता है। ५१ पशु-पालन कहिए, अनेक पशून की रक्षा करि, तिनके पालने की विद्या। पशन की पीड़ा पहिचानना, पशु परीक्षा करनी, तिनके शुभाशुभ चिह्न, दय का समझना, तिनके खान-पान में समझना, तिनके अनेक रोग समझ. ताकी ओषधि का जानना। सो पशुपालन वार्ता है।६। ऐसे षट कर्म-भेद, वार्ता आजीविका को विधि, आदि चक्री में प्रजा के सुखी होने के, भोग भमि के बिछरै भोले जीव तिनकों बताई। ता प्रमाण सर्व प्रजा के लोग अपने तन की तथा कुटुम्ब को रक्षा करतै भये। ये षट भेद वार्ता कर्म के हैं। २। ये दोय कर्म तो इस भव के यश सुखकौं उपदेशे। च्यारि कर्म पर-भव के कल्याण कौं, स्वर्ग मोक्ष की राह बतावै को उपदेशे। सो कहिये हैं। दोय तो ऊपर कहे। तीसरा कर्म जो दान सो च्यारि प्रकार है। भेषज, अन्न, शास्त्र और अभयसो ओषधि-दान तैं तो पर-भव में निरोग शरीर या है। अन्न दान करि पर-भव में सदा अन्न भोजन करि, सुखी रहै। औरन कंपालनहारा होय । मायु पर्यन्त सुखी रहै । शास्त्र-दान ते भवान्तर में ज्ञानवान महापण्डित होय । अभय-दान करि, दीर्घ वायु का धारी इन्द्र-अहमिन्द्र होय तथा निर्भय जो मोक्ष स्थान ताहि पावै। तातै व्यार दान दीजिये। सो दुःखित-भुखित दीनन कौ तौ करुणा करि, सन्तोष सहित, पुचकार करि देना। पात्रनक भक्ति करि देना। इस दान करि जीव परमव मैं बहुत सुखी होय सो ऐसा दान-कर्म का उपदेश किया। ३ । चौथा स्वाध्याय सो जिनवाणी का पाठ, अनेक धर्म-शास्वत का अध्ययन करना, सो ऐसा स्वाध्याय नाम कर्म उपदेश्या । ४ । बारह प्रकार तप सो