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पुण्यवान्का सहज ही सत्य बोलनका स्वभाव होय है। तातें पुण्यवान सत्य बोल मान नाहीं करें। ये पुण्यवानका दुसरा भेद है। २। होन कुलो, तुच्छ पुण्यो, अल्पसा पुरुषार्थ पाय मान करै। दीन जीवनकौं पोडै भय बतावै। कहै हमसे बलवान् पुरुषार्थी और नाहीं। ऐसा कहि अभिमान करै । जे महान पुण्यी हैं ते बड़ा भी बल पराक्रम ! धार मान नाहीं करें। दीन जीवनको रक्षा करें। ये तीसरा पुण्यवानका चिन्ह है। ३। हीन पुण्यी, महा रौद्रपरिणामी अन्तरज में तो महा निर्दय भाव अरु बाह्य लोक दिखावैको दान देय दया करि मान करै। कहै हम दयावान हैं। जे दीर्घ-भागी हैं वे सहज ही कोमल चित्तके धारी महा दया भाव करि मी मान नहीं करें। ये चौथा पुण्यवान का चिन्ह फल है । ४। अल्प पुण्यका धरो, पादान देश न माहै हामो दाता और नाहीं। ऐसा मान करें। दीर्घ पुण्धी सहजही चित्तका उदार, दयावान बड़ा दान करें मी, मान नहीं करें। ये पुण्यवान का पांचवां चिन्ह है । ५। हीन पुरयी अल्पसा ही विरक्त होय मान करै। कहै हम त्यागी हैं,हमैं कछु भो वांच्छा नाहों। और जे बड़मागो-महान पुण्यी हैं। ते अनेक भोग-सम्पदा पाय, तासै उदास रहैं। मान नहीं करें। ये पुण्यवानका छडा चिन्ह है । ६। जो इन षट् बातनमें मान नहीं करै, सो ये पुण्यका फल है। इति षट् गुण सो
ये भगवान विष पाईथे है। भगदान, राज्य अवस्थामैं इन्द्र के ल्याये अनेक प्राभषण-रत्र मयी आभषणन को | अलंकृत करि, भषराम कौं शोभा देते भये । सो आचार्य कहैं कि जो अपने आश्रय पाव ताको यशवंत करै, भला
दिखावै। गवानके तनका आश्रय आभूषणनने लिया, सो आभूषण भले शोभते भये। तिन सर्व आभूषण Ji में मुख्य हार है। सो हारके अनेक भेद हैं। सो ही कहिये हैं। हारके तीन भेद हैं, एकावली जिष्टी हार, । स्त्रावली जिष्टी हार, और अल्पवृत्तक । ये तीन भेद, हार के हैं । तहां जिष्टीके पांच भेद हैं। सीरख. उपसोरख,
अवघाट, प्रकांडक और तरल-प्रबंध। ये पांच जिष्टी हारके भेद हैं। सो जिष्टी नाम लड़ीका है। हारमें | जेती लड़ी होय, तिनको जिष्टी कहिये। सो लड़ के पांच मैद है। तहां जिस हारमें केवल मोती ही मोतीन
की लड़ो होय, सो शकावली जिष्टो हार कहिये।३। और जाके मध्य में तो मारा होय और दोय तरफ मोती होय, सो रत्नावली नामा जिष्टी हार है। २। और जामें दोय मोती एक मणि, ऐसे जो लडी पोई
की मासामगि तीन-तीन मोदीन के अन्तर में एक-एक मरिण होय । तथा व्यारि-च्यारि
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