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पोछे तप लेय, केवलज्ञान पाय, समोशरण सहित विहार कर्म करि, धर्मोपदेश देते भये। तिसकं सुनि बारह सभा के धर्मार्थो जोव, धर्म-मार्गलागते मये। सो तिन बारह सभा के नाम कहिये हैं। प्रथम सभा में कल्पवासी देव, दुसरो में ज्योतिषी देव, तीसरी में व्यतर, चौथी में भवनवासी देव,पांचवीं में कल्पवासी देवियो छठी मैं ज्योतिषी देवांगना, सातवों में व्यन्तर देवों की देवियां, पाठवों में भवनवासी देविया, नववी सभा मैं मुनि, दसवों में आर्यिका व सर्व स्त्री, ग्यारहवी में मनुष्य, बारहवों में सर्व जाति के सनी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-इन बारह सभा सहित, भगवान् मोक्ष-मार्ग प्रगट करते, जगत्-जीवन के पुण्य के प्रेरे उनके कल्याण के अथि, विहार करते मये। सो अनुक्रम ते कैलाश पर्वत पर आये। जब भगवान के निर्वाण होने में चौदह दिन बाकी रहे, तब भरत चक्री आदि आठ मुख्य महान् राजा, तिनकुं शुभ स्वप्न भये। तिनके नाम व चिह्न बताइये हैं। जिस दिन भगवान ने योग निरोधे, उस दिन की रात्रि विर्षे भरतेश्वर चक्की के ऐसा स्वप्न हुआ कि मानो सुमेरुपर्वत ऊँचा होय, सिद्धक्षेत्र से जाय लग्या है।। भरत जो के पुत्र अर्ककीर्ति, ताक ऐसा स्वप्न भया कि स्वर्ग लोक के शिखर ते एक महान् ओषधी का वृक्ष आया था, वह जगत्-जीवन के जन्म-मरण का दुःख खोय के, अब लोक के शिखर जायवे कौं उद्यमी भया है। २ । भरत चकी का गृहपति-रत्न, तिसकं ऐसा स्वप्न भया कि ऊर्द्धलोक ते एक कल्पवृक्ष आया था, वह जीवन की मनवांछित फल देय के. पीछा स्वर्गलोक के शिश्वर जायगा।३। चक्री का मुख्य मन्त्री, ताकौं ऐसा स्वप्न आया कि लोकन के भाग्य ते एक रतन दीप आया था सो जिनक रतन लेवे की इच्छा थी तिनक अनेक स्तन देय के, पीछे उर्वलोक कौं, गमन करेगा। ४ । भरत जी के सेनापति कौं ऐसा स्वप्न आया कि एक अनन्तवीर्य का धारी मृगराज, अद्भुत पराक्रमी, सो कैलाश पर्वत रूपी वज्र का पींजरा ताकों छेद करि, ऊर्ध्व विष उछवले कौ उद्यमी भया है ।। जयकुमार जी का पुत्र अनन्तवीर्य, ताकी ऐसा स्वप्न आया कि एक अद्भुत चन्द्रमा, अनन्तकला का धारी, जगत् विर्षे उद्योत करि, तारानि सहित, पर्यतोक कौं जायवे कौं उद्यमी मया है। ६ । भरत चक्री को पटरानो सुभद्रा ताकुंरेसा स्वप्न आया कि वृषभदेव की रानी यशस्वती अरु सुनन्दा ये दोऊ तथा इन्द्र की पटरानो शची-ए तीनों मिलकर बैठी, सोच करती हैं ।७। काशी । देश का राजा चित्रांगदत्तको ऐसा स्वप्न आया जो अद्भुत तेज का धारी सूर्य, पृथ्वी विर्षे उद्योत करि ऊर्ध्वलोक
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